Friday, May 25, 2018

एकला चलो रे / रबीन्द्रनाथ टैगोर

जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे 
तोबे एकला चलो रे
तोबे एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो
एकला चलो रे

जोदी केउ कोथा ना कोए
ओ रे ओ ओभागा 
केउ कोथा न कोए

जोदी सोबाई थाके मुख फिराए 
सोबाई कोरे भोई 
तोबे पोरान खुले 

ओ तुई मुख फूटे तोर मोनेर कोथा 
एकला बोलो रे 

जोदी सोबाई फिरे जाए 
ओ रे ओ ओभागा
सोबाई फिरे जाई 

जोदी गोहान पोथे जाबार काले केउ 
फिरे ना चाय 
तोबे पोथेर काँटा

ओ तुई रोक्तो माखा चोरोनतोले 
एकला डोलो रे

जोदी आलो ना धोरे
ओ रे ओ ओभागा 
आलो ना धोरे 

जोड़ी झोर-बादोले आंधार राते 
दुयार देये घोरे
तोबे बज्रानोले 

आपोन बुकेर पाजोर जालिये निये 
एकला जोलो रे 

जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे 
तोबे एकला चलो रे 
तोबे एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो, 
एकला चलो रे


No comments:

Post a Comment

घरेलू स्त्री / ममता व्यास

जिन्दगी को ही कविता माना उसने जब जैसी, जिस रूप में मिली खूब जतन से पढ़ा, सुना और गुना... वो नहीं जानती तुम्हारी कविताओं के नियम लेकिन उ...