Wednesday, March 3, 2021

रात हुई / फ़रहत एहसास

तुम को पा लेने की धुन में
दुनिया ओढ़ी
रंग-बिरंगे कपड़े पहने
पेशानी पर सूरज बाँधा
आँगन भर में धूप बिछाई
दीवारों पर सब्ज़ा डाला
फूलों पत्तों से अपनी चौखट रंगवाई
मौसम आए
मौसम बीते
सूरज निकला धूप खिली
फिर धूप चढ़ी और और चढ़ी
फिर शाम हुई
फिर गहरी काली रात हुई

No comments:

Post a Comment

घरेलू स्त्री / ममता व्यास

जिन्दगी को ही कविता माना उसने जब जैसी, जिस रूप में मिली खूब जतन से पढ़ा, सुना और गुना... वो नहीं जानती तुम्हारी कविताओं के नियम लेकिन उ...