Thursday, February 4, 2021

देह के मस्तूल / चंद्रसेन विराट

अंजुरी-जल में प्रणय की
अर्चना के फूल डूबे ।

ये अमलतासी अँधेरे,
और कचनारी उजेरे,
आयु के ऋतुरंग में सब
चाह के अनुकूल डूबे ।

स्पर्श ने संवाद बोले,
रक्त में तूफ़ान घोले,
कामना के ज्वार-जल में
देह के मस्तूल डूबे ।

भावना से बुद्धि मोहित-
हो गई प्रज्ञा तिरोहित,
चेतना के तरु-शिखर डूबे,
सुसंयम-मूल डूबे ।

No comments:

Post a Comment

घरेलू स्त्री / ममता व्यास

जिन्दगी को ही कविता माना उसने जब जैसी, जिस रूप में मिली खूब जतन से पढ़ा, सुना और गुना... वो नहीं जानती तुम्हारी कविताओं के नियम लेकिन उ...