Friday, December 18, 2020

एक लड़का मिलने आता है... / संजय कुमार कुंदन

एक लड़का मिलने आता है
उस लड़की से कुछ शाम ढले

कुछ ऐसी कशिश इस शाम में है
इस फितरत के इनाम में है
ये हल्का अँधेरा, हल्की ख़लिश
जिसमें जज़्बों का राज़ पले
एक लड़का मिलने आता है
उस लड़की से कुछ शाम ढले

वो बन्द कमरे में होते हैं
वो हँसते हैं या रोते हैं
उनकी बातों की शाहिद है
जो एक लरज़ती शमा जले
एक लड़का मिलने आता है
उस लड़की से कुछ शाम ढले

बातें करते खो जाता है
लड़का ग़मगीं हो जाता है
लड़की डरती है मुस्तक़बिल
शायद गहरी इक चाल चले
एक लड़का मिलने आता है
उस लड़की से कुछ शाम ढले

क़स्बे के शरीफ़ इन हल्क़ों में
ग़ुस्सा है मगर इन लोगों में
इनके भी घर में लड़की है
क्यूँ इश्क़ का ये व्यापार चले
एक लड़का मिलने आता है
उस लड़की से कुछ शाम ढले

अब कैसे कहूँ इन दोनों से
एक प्यार में डूबे पगलों से
बस्ती से बाहर इश्क़ करें
बस्ती के दिल में खोट पले
एक लड़का मिलने आता है
उस लड़की से कुछ शाम ढले

जो कुछ भी है दुनिया का है
फिर दिल का क्यूँ ये धंधा है
क्यूँ सदियों से मिलते हैं दिल
दुनिया में जब-जब शाम ढले
क्यूँ लड़का मिलने आता है
उस लड़की से कुछ शाम ढले

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