Saturday, October 24, 2020
सपनें जो सोने ना दे... / देवेश कुमार पाण्डेय
कुछ सपने अधूरे नहीं होते
उड़ चलते है अपने हीं धुन में मगन
हक़ीकत से कोसों दूर पहुँच के,
फिर गुम हो जाते है अचानक से,
बाकी सपनों की तरह हीं।
पर किसी चौराहे पे नहीं गुम होते ये सपने,
या किसी समंदर में जा के नहीं गिरते।
बस छुप जाते है जैसे बादलों के बीच सूरज
और फिर बादल चाहे कितने भी काले इरादों के हो,
सूरज उनका सीना चीर निकल हीं आता है, मुस्कुराता।
पता नहीं क्या ख़ास होता है इन सपनों में,
होठों से मुस्कान चुरा कर आँखों मे ला देते हैं।
एक अलग हीं नशा, एक अलग हीं जुनून होता है,
जिसने एक बार देख लिया, कुछ और नहीं दिखता उसे।
दुनिया में सपनों के मतलब बताने वाले हजार हैं,
लॉजिक और दुनियादारी की बात करने वाले लोग।
पर सपनों की अपनी हीं एक दुनिया होती है,
जिसने सपना देखा हो,
उसके पास होता है उस दुनिया का पता।
थोड़ा वक्त लग सकता है, या फिर बहुत ज्यादा,
उस पते तक पहुँचने में।
पर वक्त से डर थोड़े ही लगा हैं,
कभी उन सपनीली आँखों को।
जो सपने आँखों में मुस्कान भरते हैं,
वो अलग होते है बाकी सपनों से,
और वो कभी अधूरे नहीं होते।
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