Monday, September 21, 2020

इस आत्महत्या के युग में / दिनकर कुमार

इस आत्महत्या के युग में
कैसे खिलते हैं फूल
मंडराते हैं भँवरे
गाती है कोयल

इस आत्महत्या के युग में
कैसे नदी जाकर
मिलती है सागर से
कैसे लहरें मचलती हैं
चाँद को छूना चाहती हैं

इस आत्महत्या के युग में
कैसे प्रेम किया जाता है
कैसे भावनाओं को
जिया जाता है
कैसे अंकुरित हो पाते हैं बीज

इस आत्महत्या के युग में
कैसे बची रह पाती है
जीने की ललक
दुनिया को बदल डालने
की सनक
कैसे हृदय के कोमल हिस्से में
चुपचाप छिपे रहते हैं
इन्द्रधनुषी सपने।

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