Tuesday, March 3, 2020

सृष्टि / सुमित्रानंदन पंत

मिट्टी का गहरा अंधकार
डूबा है उसमें एक बीज,
वह खो न गया, मिट्टी न बना,
कोदों, सरसों से क्षुद्र चीज!

उस छोटे उर में छिपे हुए
हैं डाल-पात औ’ स्कन्ध-मूल,
गहरी हरीतिमा की संसृति,
बहु रूप-रंग, फल और फूल!

वह है मुट्ठी में बंद किए
वट के पादप का महाकार,
संसार एक! आश्चर्य एक!
वह एक बूँद, सागर अपार!

बन्दी उसमें जीवन-अंकुर
जो तोड़ निखिल जग के बन्धन,
पाने को है निज सत्व,मुक्ति!
जड़ निद्रा से जग कर चेतन!

आः, भेद न सका सृजन-रहस्य
कोई भी! वह जो क्षुद्र पोत,
उसमें अनन्त का है निवास,
वह जग-जीवन से ओत-प्रोत!

मिट्टी का गहरा अन्धकार,
सोया है उसमें एक बीज,
उसका प्रकाश उसके भीतर,
वह अमर पुत्र, वह तुच्छ चीज?

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