Sunday, March 1, 2020

गेहूँ का अस्थि विसर्जन / अखिलेश श्रीवास्तव

खेतो में बालियो का महीनों
सूर्य की ओर मुंह कर खड़ा रहना
तपस्या करने जैसा है
उसका धीरे-धीरे पक जाना है
तप कर सोना बन जाने जैसा

चोकर का गेहूँ से अलग हो जाना
किसी ऋषि का अपनी त्वचा को
दान कर देने जैसा है

जलते चूल्हे में रोटी का सिकना
गेहूँ की अंतेष्ठी है
रोटी के टुकड़े को अपने मुँह में एकसार कर
उसे उदर तक तैरा देना
गेहूँ का अस्थि विसर्जन जैसा है

इस तरह
तुम्हारे भूख को मिटा देने की ताकत
वह वरदान है
जिसे गेहूँ ने एक पांव पर
छ: महीना धूप में खडे़ होकर
तप से अर्जित किया था सूर्य से

भूख से
तुम्हारी बिलबिलाहट का खत्म हो जाना
गेहूँ का मोक्ष है

इस पूरी प्रक्रिया में कोई शोर नहीं हैं
कोई आवाज नहीं हैं
शांत हो तिरोहित हो जाना
मोक्ष का एक अनिवार्य अवयव हैं

मैं बहुत वाचाल हूँ
बिना चपर-चपर की आवाज निकाले
एक रोटी तक नहीं खा सकता।

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