Thursday, January 9, 2020

मेरा यूटोपिया / नचिकेता

मुझे विश्वास है
एक दिन बदल जाएगी ये दुनिया
एक दिन बदल जाएगी यह धरती
एक दिन बदल जाएगा आकाश
मुझे विश्वास है
एक दिन पिस्तौलों से निकलेंगे फूल
एक दिन मुरझा जाएँगी हत्यारी तोपें
एक दिन ठंडे पड़ जाएँगे चीथड़े उड़ाते बम
मुझे विश्वास है
एक दिन सरहदें मिटा दी जाएँगी नक्शों से
एक दिन लकीरें मिटा दी जाएँगी हथेलियों से
एक दिन दीवारें ढहा दी जाएँगी घरों से
मुझे विश्वास है
एक दिन काँटे उगना छोड़ देंगे गुलाबों के संग
एक दिन शर्मसार हो,
काटना छोड़ देंगे विषधर
एक दिन अपना ठिया छोड़ देंगे
आस्तीन के साँप
मुझे विश्वास है
एक दिन पसीना सूखने से पहले
मिलेगा पारिश्रमिक
एक दिन भूख लगने से पहले
परोसी जाएगी रोटी
एक दिन करवट बदलने से पहले
आ जाएगी नींद
मुझे विश्वास है
एक दिन सारे सिरफिरे करेंगे
अपनी आख़िरी हरकत
एक दिन सभी दंगाई छोड़ जाएँगे
गली और शहर
एक दिन लौट आएगा बस्ती में
भटका भाईचारा
मुझे विश्वास है
एक दिन सभी भागे हुए बच्चे लौट आएँगे घर
एक दिन माँओं के चेहरों पे लौट आएगी मुस्कान
एक दिन मिल जाएँगे बेटियों के लिए उपयुक्त वर
मुझे विश्वास है
एक दिन संसार के समस्त ज़िद्दी छोड़ देंगे ज़िद
एक दिन सारे अहमक़ और दंभी हो जाएँगे विनीत
एक दिन जी भरकर खिलखिलाएँगी
सभी खामोश स्त्रियाँ
और अंतत:
एक दिन अंधेरे होने से पहले जी उठेगा न्याय
एक दिन टूटने से पहले लहक उठेंगे दिल
एक दिन आँख खुलने से पहले घर आएगी खुशी
सब कुछ
हाँ, सब कुछ ठीक-ठाक हो जाएगा एक दिन
पूरा-पूरा विश्वास है मुझे
मगर उस दिन क्या
सचमुच शेष रह जाएगा
ज़िंदा रहने का कोई औचित्य
और ज़िंदगी का कोई अर्थ?
नहीं रहेगा शायद, बिल्कुल नहीं!
मगर फिर भी
मैं इन्हीं विश्वासों के साथ जिऊँगा
और जब तक जिऊँगा
अपने कहे और सोचे को तामीर करूँगा
ताकि उसके बाद मेरे और आपके बच्चे
कुछ नई ग़फ़लतों के साथ
कुछ नई-सी उम्मीदों के लिए जिएँ
और कुछ नए विश्वासों के साथ मरें
हमसे कुछ ज़्यादा जिएँ
और, हमसे कुछ कम मरें!

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