जब वो बच्चे जन्मे तो बस हँसते, खिलखिलाते
प्रेम करते, मुस्कुराते
सबको बाहों में भरते, चूमते
किलकारी मार कर दौड़ते
आकर किसी की भी गोद में बैठ जाते
और उसकी छोटी ऊँगली पकड़ कर
किसी के साथ भी चल देते, मुस्कुराते
वो ऊँगली का रंग नहीं देखते थे
न ही पूछते थे ऊँगली की जात और मज़हब
क्योंकि उन्हें उंगली की ऊष्मा पसंद थी
और पसंद था उनकी मुट्ठी में एक अदद ऊँगली का होना
वो बच्चे सब कुछ करते थे
बस किसी से घृणा नहीं करते थे
क्योंकि कोई भी बच्चा
जन्म से घृणा करना नहीं सीखता
वो जन्मता है बस प्रेम के साथ
प्रेम एक जन्मजात गुण है
और घृणा मानव निर्मित है
घृणा हम यहीं सीखते हैं
और यहीं छोड़ कर चले भी जाते हैं
क्योंकि उसका भार
चार अदद कंधे और पूरा मोहल्ला मिललकर भी
अर्थी पर नहीं उठा पाता
जब हम मरते हैं तो घृणा से हमारी भौहें तनी नहीं होतीं
हमारे माथे पर क्रोध के बल की रेखाएं नहीं होतीं
हमारे आँखें गुस्से से लाल नहीं होतीं
जब हम मरते हैं
तो बस हमारी मुट्ठी बंध जाती है
उसी छोटी ऊँगली की उष्मा की आस में
हम घृणा यहीं छोड़ कर
चले जाते हैं बौद्ध होकर
एक शांत, सौम्य, प्रेम में पड़ा चेहरा लेकर
वहां,
जहाँ से हमें भेजा गया था,
प्रेम करने. हंसने. खिलखिलाने.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
घरेलू स्त्री / ममता व्यास
जिन्दगी को ही कविता माना उसने जब जैसी, जिस रूप में मिली खूब जतन से पढ़ा, सुना और गुना... वो नहीं जानती तुम्हारी कविताओं के नियम लेकिन उ...
-
चाँदनी की पाँच परतें, हर परत अज्ञात है। एक जल में एक थल में, एक नीलाकाश में। एक आँखों में तुम्हारे झिलमिलाती, एक मेरे बन रहे विश्वास...
-
The Moon will shine, Without your smile, But no longer shall it be, A Moon that shines for me, Gone are the days, When you'd just ...
-
All about the country, From earliest teens, Dark unmarried mothers, Fair game for lechers — Bosses and station hands, And in town and city...
No comments:
Post a Comment