जनवरी के महीने में
सुबह की शीत को
ठोकर मारती हुई
कुएँ की मेड़ पर
प्राचीन संस्कृति की प्रतीक
गुलमोहरी बिन्दिया लगाए
टपरिया पर पड़ी छान-सी
तार-तार होती
ओढ़नी का पल्लू समेटे
पुराने तौलिए में
चाँद-सी ज्वार की रोटियाँ तीन
लहसुन की चटनी के साथ
युद्ध के मोर्चे पर जाती-सी वह
खुरपी उठाती है नींदने के लिए
तभी ऊनी शालधारी
ठकुराइन पूछती है—
तुझे ठंड नहीं लगती?
'लहसुन की चटनी खाने वालों को
ठंड नहीं लगती माँ।'
आत्मविश्वास से सना उत्तर पाते ही
ठकुराइन कहती है—
'तभी मैं सोचती हूँ
लहसुन और मिर्च इतने महँगे क्यों हैं?'
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घरेलू स्त्री / ममता व्यास
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Chôl Chôl Chôl Urddhô gôgône baje madôl Nimne utôla dhôrôni tôl Ôrun prater tôrun dôl Chôlre Chôlre Chôl Chôl Chôl Chôl.. Ushar dua...
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