Friday, May 10, 2019

नादान परिंदे / इरशाद कामिल

ओ नादान ...
ओ नादान परिंदे घर आ जा
घर आ जा
घर आ जा
घर आ जा

क्यूँ देश-विदेश फिरे मारा
क्यूँ हाल-बेहाल थका हारा
क्यूँ देश-बिदेश फिरे मारा
तू रात-बेरात का बंजारा

सौ दर्द बदन पे फैले हैं
हर करम के कपड़े मैले हैं

काटे चाहे जितना परों से हवा को
खुद से ना बच पाएगा तू
तोड़ आसमानों को
फूंक दे जहानों को
खुद को छुपा ना पाएगा तू
कोई भी ले रस्ता
तू है तू में बसता
अपने ही घर आएगा तू

काग़ा रे
काग़ा रे
मोरी इतनी अरज तोसे
चुन चुन खाइयो माँस
अरजिया रे
खाइयो ना तू नैना मोरे
खाइयो ना तू नैना
मोहे पिया के मिलन की आस

ओ नादान …
ओ नादान परिंदे घर आ जा
घर आ जा
घर आ जा
घर आ जा

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