Friday, April 12, 2019

मोहब्बत की बात / इरशाद कामिल

चलो मोहब्बत की बात करें
अब
मैले जिस्मों से ऊपर उठ कर
भूलते हुए कि कभी
घुटने टेक चुके हैं हम
और देख चुके हैं
अपनी रूह को तार तार होते
झूटे फ़ख़्र के साथ
चलो मोहब्बत की बात करें
ज़िंदगी के पैरों तले
बे-रहमी से रौंदे जाने के बा'द
मरहम लगाएँ ज़ख़्मी वजूद पर
जो शर्म से आँखें झुका कर
बैठा है सपनों के मज़ार पे
इस से बुरी कोई बात नहीं कर सकते
हम अपनी ही ज़िद में
धोका दे चुके हैं अपने-आप को
खेल चुके हैं ख़ुद अपनी इज़्ज़त से
भोग चुके हैं झूट को सच की तरह
अब
इन हालात में
कोई ग़ैर-ज़रूरी बात ही कर सकते हैं हम
आओ मोहब्बत की बात करें

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