Saturday, February 2, 2019

आज फिर आकाश में कुहरा घना है / देवेश कुमार पाण्डेय

आज फिर आकाश में कुहरा घना है,
ख़ैर, सोशल मीडिया में कुछ कहना मना है।

रंगे सियार की कहानी बचपन में सुनी थी,
आज-कल संसद में हर दिन सामना है।

स्विस बैंकों में जो रौनक बहुत है,
कागजों पे फिर कहीं एक पुल बना है।

आप की माने तो जो फिर से मिग़ गिरा हैं,
वो पायलट के भूल से हुई एक दुर्घटना है।

भेड़ियों को भेजा है जब भेड़ों ने चुन कर,
क्या ग़ज़ब कि खा रहे वो मेमना है।

हाथों से धूल को झाड़े भी तो क्या?
अपना तो कमल भी कीचड़ से सना है।

सड़क पे उतर के जब धरना दिया तो,
आपने कहा - ये हमारा बचपना है।

आपसे बहस भी अब करना ही क्या है?
हो चुका जब आपका शर्म ही फ़ना है।

उड़ गये थे जो परिंदे आपके इरादों से डर कर,
क्या ग़रज उनको कि घर भी लौटना है।

कुछ परिंदे लौटे हैं, मैदान में जा जमे हैं।
नाप लो, उनके साइज़ का कोई पिंजरा बना हैं?

खैर, मत कहो आकाश में कुहरा घना है।
सोशल मीडिया भड़का सकती संवेदना है।

-दुष्यन्त कुमार को समर्पित

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