Monday, February 11, 2019

इक दिन बिक जाएगा / मजरूह सुल्तानपुरी

इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल
जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल
दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत
कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल

अनहोनी पग में काँटें लाख बिछाए
होनी तो फिर भी बिछड़ा यार मिलाए
ये बिरहा ये दूरी, दो पल की मजबूरी
फिर कोई दिलवाला काहे को घबराये,
धारा तो बहती है, बहके रहती है
बहती धारा बन जा, फिर दुनिया से डोल

परदे के पीछे बैठी साँवली गोरी
थाम के तेरे मेरे मन की डोरी
ये डोरी ना छूटे, ये बन्धन ना टूटे
भोर होने वाली है अब रैना है थोड़ी,
सर को झुकाए तू, बैठा क्या है यार
गोरी से नैना जोड़, फिर दुनिया से डोल

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