Sunday, October 28, 2018

अरमानों की अस्थियाँ / प्रेरणा सिन्हा


बातों में तो ख़ुशी सी होती है ज़ाहिर
होंठों पे भी कलियाँ मुस्कानों की खिल जाती हैं 
पर गहरे अंतर्मन में उतरती हूँ जब भी
कई अस्थियाँ अरमानों की मिल जाती हैं 

कड़ी धूप में अकेले चलने का ग़म कब था हमें
क्यूँ ये ठंडक बहारों की मिल जाती है
ग़म तो होता है जब मिल के छिन जाती है

जिन आँखों को आदत हो बस आँसुओं की
उन आँखों में कोई ख्वाब दो
सुना है काँच की होती है सपनों की दुनिया
टूट के क्षण में ही बिखर जाती है

गहरे अंतर्मन में उतरती हूँ जब भी
कई अस्थियाँ अरमानों की मिल जाती हैं 

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