Tuesday, August 14, 2018

द्रोपदी के सोहागरात / मीरा झा

(नोट: यह कविता अंगिका भाषा में है।)

चौंकी गेल्हौ न तों!
केहनोॅ भेलोॅ होतै सोहागरात
हमरोॅ सोहाग, तोरोॅ सोहाग
तोरोॅ सौभाग्य हमरोॅ सौभाग्य

वहेॅ धड़कन वहेॅ उमंग
मिलन के तमन्ना
वहेॅ झिझक प्यार दर्द भरलोॅ असमंजस

आजीव अनुभूति के पल-पल
ठिठकलोॅ डेग-डेग
कोय बात नै, ऐकरा सें बेसी
तेॅ पांडव पर बितलोॅ रहै

केहनोॅ बितलोॅ होतै
ख्यालो नै करनें होतै दंभ भरै सें
दंभ भरै सें फुरसत नै,
यै फुरसत में हेराय गेलै पुरुषार्थ
एत्तेॅ स्वार्थ

एक लगावेॅ चार पावेॅ
मिलन सें पैहनें जेष्ठता
के वरण भेॅ गेलै, ईमानदारी
बरतै के यहूँ नियम बनलै

धर्मराज के दिल के धड़कन
पांचाली के अन्तर्द्वन्द्व
उत्कंठा रहै प्रथम मिलन के
स्वप्निल खुशी रंग आनन्द

आयकोॅ प्रथम मिलन के रात
के स्पर्श जनित मानसिक सुख
कैहनोॅ होतै, कैहनोॅ रहतोॅ होतै
की रंग भेलोॅ होतै, अनुभव करोॅ!

अर्जुन द्रौपदी के मिलन
प्रकृति-पुरुष के
श्री कृष्ण के शक्ति के
वर-वरेण्य के, ई अद्भुत मिलन।

भीमसेन बलशाली पुरुष
के पूर्व अभिलाषा
सुरक्षा कवच के निश्चिंतता
द्रौपदी के नव-नव रूप धरानुभव

कैहनोॅ होतै उत्कट अभिलाषा
आ केहनोॅ होतै धड़कन
नकुल के सहदेव के
ओकरोॅ सोहागरात, पवित्रता के रात

बहादुर द्रौपदी की तोंय?
दंभ केॅ मानी लेल्हो पुरुषार्थ
लुटि रहलोॅ छै पाँच-पाँच सुहागरात
के अस्मिता एक्के साध

धरेॅ हाथ पर हाथ
नाभी के नीचें-बन्द कपाट,
एक साथ हा केशव!
पुरुष एक तुम्हीं हो
बस एक श्री कृष्णै देलकै साथ
रखी लाज, सोहागरात, सोहागरात

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