Thursday, May 31, 2018

दश्त की धूप / जावेद नासिर

दश्त की धूप है जंगल की घनी रातें हैं
इस कहानी में बहर हाल कई बातें हैं
गो तिरे साथ मिरा वक़्त गुज़र जाता है
शहर में और भी लोगों से मुलाक़ातें हैं
जितने अशआर हैं उन सब पे तुम्हारा हक़ है
जितनी नज़्में हैं मिरी नींद की सौग़ातें हैं
क्या कहानी को इसी मोड़ रुकना होगा
रौशनी है समुंदर है बरसातें हैं

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