Saturday, May 19, 2018

शहरों से गाँव गए / गुलाब सिंह

शहरों से गाँव गए
गाँव से शहर आए
काग़ज़ के गुलदस्ते
चिड़ियों के पर लाए

ख़ुशबू तो है नहीं
उड़ान भी नहीं
रंगों की धरती
आकाश है कहीं
छाँह में चमकते हैं
धूप लगे कुम्हलाए

बढ़ करके दूर गए
गए बहुत ऊँचे
रिश्तों की धार
बून्द -बून्द तक उलीचे
जीने की प्यास बेंच
मरने के डर लाए

एक लहर उठी
और एक नाव डूबी
आँख बचा गैरत
ऊँची छत से कूदी
मेले में जुड़े जो
अकेले वापस आए

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