मेरा प्रेम लौटता है
वापस मुझ तक
जैसे लौटती हैं गाये
हर रोज़
देहात के अपने घर
मुँह बिसूरे
हांडी में पड़े रहते हैं सपने
सपने नहीं चाहते कि
प्रेम हर रोज़ लौट आए
वापस मुझ तक
सपने चाहते हैं
भय-मुक्त होना
इसलिए वे डरते हैं
प्रेम से
प्रेम जब-जब उतरता है
सपनों की देह में
देह ज़हरीली हो जाती है
सपनों की
वापस मुझ तक
जैसे लौटती हैं गाये
हर रोज़
देहात के अपने घर
मुँह बिसूरे
हांडी में पड़े रहते हैं सपने
सपने नहीं चाहते कि
प्रेम हर रोज़ लौट आए
वापस मुझ तक
सपने चाहते हैं
भय-मुक्त होना
इसलिए वे डरते हैं
प्रेम से
प्रेम जब-जब उतरता है
सपनों की देह में
देह ज़हरीली हो जाती है
सपनों की
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