Thursday, April 26, 2018

तू किसी रेल सी / वरुण ग्रोवर

तू किसी रेल सी गुज़रती है,
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ।

तू भले रत्ती भर ना सुनती है,
मैं तेरा नाम बुदबुदाता हूँ।

किसी लम्बे सफर की रातों में,
तुझे अलाव सा जलाता हूँ।

काठ के ताले हैं, आँख पे डाले हैं,
उनमें इशारों की चाबियाँ लगा।

रात जो बाकी है, शाम से ताकी है,
नीयत में थोड़ी खराबियाँ लगा।

मैं हूँ पानी के बुलबुले जैसा,
तुझे सोचूँ तो फूट जाता हूँ।

तू किसी रेल सी गुज़रती है,
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ।

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