Sunday, June 21, 2020

पिता / पुनीत शर्मा

1.

पिता,
तुम थे
जो जीवन में,
तो इतना थे
कि घर था
“हम” से ज़्यादा “तुम”,
मेरे उड़ने से थे क्रोधित
दुखी गिरने पे थे मेरे

नहीं हो अब जो तुम,
तो इतने नहीं हो
कि तुमको ,
"तुम" भी कहता हूँ,
पिता, मैं उड़ता हूँ अब भी
मैं अब भी गिरता रहता हूँ

2.

पिता, जो शब्द है
गंभीर सा, ठहरा हुआ
जिसे पर्वत,
कभी बरगद
या ऐसी ही कोई उपमा
मिली हैं सैकड़ों बारी,
तुम पे जँचता नहीं था वो

पिता,
तुम एक लड़के थे!

जिसे रफ़्तार में
सड़कों पे दोपहिए फिरानें थे,
जिसे चप्पल को घिसना था
और धूल उड़ानी थी,
बड़ा सा गैंग होना था तुम्हारा
रौब होना था,
इलेक्शन हार के भी
रैलियों में जश्न करना था,
तुम्हारे क्रोध को
सरकारी वाहन से गुज़रना था,
किसी लीडर के मुँह को भींचकर
चाँटा लगाना था,
हज़ारों लड़कियों की मुस्कराहट
माप लेनी थी,
नए शहरों के पाठों में
तुम्हें किस्से सा होना था,
जैसे पानी के गढ्ढों में
चहककर कूदता लड़का,
महकते आम पर
दे खेंच पत्थर मारता लड़का,
भरी जेबों में राजा
ख़ाली जेबों में महाराजा,
पुरानी प्रेमिकाओं की दीवारें
फांदता लड़का

पसीने में बीमारी
घोलकर झाड़ देता था,
मोहल्ले की
हर इक शादी में
दरियां झाड़ता लड़का

मुझे इस बात पे
शक भी नहीं
विश्वास भी नही,
किसी ने काम सौंपा था तुम्हें
और हक़ से बोला था,
"सुनो! ये सात फेरे हैं
इस एक लड़की के संग ले लो"

फिर तुम्हें सीना चीर के
जग को दिखाना था,
"ये मेरी एक लड़की, एक लड़का,
एक पत्नी है,
इन्हें सीने में रख के घूमता हूँ
आठ पहर मैं।"

किया तुमने
ये सब जैसे
तुम्हारे बोलने पर
जूट का थैला उठाकर मैं,
महीने भर का राशन लाद लाता था
किराने से।

पिता,
तुम एक लड़के ही रहे
बस पीठ पर तुमने
कई बरसों उसी राशन को ढोया,
हर समय दिखते हुए
पर्वत सा, बरगद सा।

3.

कबाड़
यही नाम है उसका
पिता के जाने के बाद से,
यहीं नाम मेरा भी था
पिता में जाने के बाद से लेकर
बेरोज़गारी के अंतिम दिन तक,
शायद यही मेरा सबसे गहरा रिश्ता था उससे
शायद यही मेरा रिश्ता है दुनिया की हर ग़ैर ज़रूरी सी लगने वाली बेकार चीज़ों से,

पिता
मर जाने में बाद
अक्सर छोड़ जाते हैं एक गाड़ी,
मेरे पिता ने भी
एक स्कूटर छोड़ दिया था,
एक स्कूटर
जिसमें जान नहीं थी और
ना ही मैं उसमे फूँकना चाहता था,
ना उसे कुछ कहते हुए सुनना चाहता था
ना उसे बताना चाहता था कि पिता के जाने के बाद भी ज़िंदा रहता है एक सफ़र
जो पिता के बिना भी तय किया जा सकता है,
पिता के बिना भी उस सड़क पर चला जा सकता है जहाँ हर कोई आपको आपसे पहले उनके नाम से जानता है,
मैं उसे बस इतना बताना चाहता था और मैंने बताया कि पिता के बिना भी पिता का रहा जा सकता है,

वो कबाड़
मेरे किसी काम का नहीं था
सिवाय इसके कि मैं उसे बस अपने घर में
एक खूँटे की तरह
गाड़ के रखना चाहता था
और उसके साथ बाँध के रखना चाहता था उन सारी तस्वीरों को
जो मेरे और मेरे पिता के बीच अब भी तैर रही हैं
मुझे लगता है जैसे मैंने उस खूँटे से बाँध के रखा है एक पूरे के पूरे इंसान को
एक खूँटे को गाड़ के रखा है मैंने
अपनी घर के सामने
एक खूँटे से बाँध के रखा है मैंने
अपने पिता को,
मैंने उसे गाड़ा
और घर के दरवाज़े के ठीक सामने गाड़ा,
जैसे याचक हो कोई
ताकता रहता हो
घूरता रहता हो
अर्ज़ी लगाता हो रोज़ अंदर आने की
जैसे शायद अंदर आ जाए
तो वो मोक्ष पा जाए
कौन देता है अपने पिता को मोक्ष
आप छोड़ के आइए अपने पिता को काशी में
मैं तो नहीं छोड़ूँगा
जाइए चाहिए जो कर लीजिए
मैं नहीं उखाड़ूँगा वो खूँटा
मैं नहीं दूँगा अपने पिता को मोक्ष
आप चाहें तो मुझसे मुक्ति पा सकते हैं

4.

पिता पत्थर थे
पिता पत्थरों का पहाड़ थे
पिता पहाड़ पर लगा बरगद थे
पिता बरगद पर लगा भूत थे
पिता भूतों की कहानियों के नायक थे
पिता नायक के सामने खड़ा खलनायक थे
पिता खलनायक के भीतर खड़ा पुरुष थे
पिता पुरुष के भीतर छुपी स्त्री थे
पिता स्त्री के भीतर रखी उड़ान थे
पिता उड़ान के भीतर नाचता दंभ थे
पिता दंभ के भीतर सिमटा हुआ डर थे
पिता डर के अंदर जीवित जिजीविषा थे
पिता जिजीविषा को सींचता हुआ एक लड़का थे
पिता एक लड़के का मरा हुआ स्वप्न थे
पिता स्वप्न को देखने वाली आँख थे
पिता आँख से न टपक सका आँसू थे
पिता आँसू में घुला हुआ गुस्सा थे
पिता गुस्से में उठा हुआ हाथ थे
पिता हाथ के भीतर की लकीरें थे
पिता लकीर पर चलता हुआ मनुष्य थे
पिता मनुष्य के भीतर का खालीपन थे

पिता खालीपन थे
खालीपन के भीतर पिता कहीं नहीं थे

दरअसल
पिता एक प्याज़ थे
जिसे परत दर परत खोलने के बाद
वो हमें कहीं नहीं मिला

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