Wednesday, April 11, 2018

रात हमारी तो / स्वानंद किरकिरे

रतिया कारी कारी रतिया
रतिया अंधियारी रतिया
रात हमारी तो, चाँद की सहेली है
कितने दिनों के बाद, आई वो अकेली है
चुप्पी की बिरहा है, झींगुर का बाजे साथ
रात हमारी तो, चांद की सहेली है
कितने दिनो के बाद, आई वो अकेली है
संझा की बाती भी कोई बुझा दे आज
अंधेरे से जी भर के, करनी है बातें आज
अँधेरा रूठा है, अँधेरा बैठा है
गुमसुम सा कोने में बैठा है
अंधेरा पागल है, कितना घनेरा है
चुभता है, डंसता है, फिर भी वो मेरा है
उसकी ही गोदी में, सर रख के सोना है
उसकी ही बाँहों में छुप के से रोना है
आँखों से काजल बन, बहता अंधेरा आज

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