Wednesday, March 31, 2021
Survivor / Roger McGough
Everyday,
I think about dying.
About disease, starvation,
violence, terrorism, war,
the end of the world.
It helps
keep my mind off things.
Tuesday, March 30, 2021
बीज / सपना मांगलिक
गिरा बीज कोई अनजान
उम्मीदों का उमड़ा तूफ़ान
धरती सीने हुई रोपाई
फसल स्वप्न की लहलहाई
थी सख्त धरा जैसे मरू
काश बनता यह विशाल तरु
रवि ने अपनी तपिश बढ़ाई
धूप भी तंज से खिलखिलाई
है कहाँ नसीब का जल तुझपे मूरख
करेगी कैसे इसकी सिंचाई?
भावों की बहती बूंदों से
सींचा नयनों के मेघों से
सह सूरज की प्रचंड तपन
हर मुश्किल को मैंने किया दफ़न
कर ली उम्मीदों की यूँ सिंचाई
बिखरी सुगंध चिड़िया चहचहाई
मेहनत से जीवन गया संवर
बीज कल का आज बना शजर
Sunday, March 28, 2021
होरी खेलन कू आई राधा प्यारी / मीराबाई
होरी खेलन कू आई राधा प्यारी हाथ लिये पिचकारी॥
....हाथ लिये पिचकारी।।
कितना बरस के कुंवर कन्हैया कितना बरस राधे प्यारी॥
....हाथ लिये पिचकारी।।
सात बरस के कुंवर कन्हैया बारा बरस की राधे प्यारी॥
....हाथ लिये पिचकारी।।
अंगली पकड मेरो पोचो पकड्यो बैयां पकड झक झारी॥
....हाथ लिये पिचकारी।।
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर तुम जीते हम हारी॥
....हाथ लिये पिचकारी।।
The Race Industry / Benjamin Zephaniah
The coconuts have got the jobs.
The race industry is a growth industry.
We despairing, they careering.
We want more peace they want more police.
The Uncle Toms are getting paid.
The race industry is a growth industry.
We say sisters and brothers don't fear.
They will do anything for the Mayor.
The coconuts have got the jobs.
The race industry is a growth industry.
They're looking for victims and poets to rent.
They represent me without my consent.
The Uncle Toms are getting paid.
The race industry is a growth industry.
In suits they dither in fear of anarchy.
They take our sufferings and earn a salary.
Steal our souls and make their documentaries.
Inform daily on our community.
Without Black suffering they'd have no jobs.
Without our dead they'd have no office.
Without our tears they'd have no drink.
If they stopped sucking we could get justice.
The coconuts are getting paid.
Men, women and Brixton are being betrayed.
Saturday, March 27, 2021
ग़लत लगता है / अहमद कमाल परवाज़ी
फूल पर ओस का क़तरा भी ग़लत लगता है
जाने क्यूँ आप को अच्छा भी ग़लत लगता है
मुझ को मालूम है महबूब-परस्ती का अज़ाब
देर से चाँद निकलना भी ग़लत लगता है
आप की हर्फ़-अदाई का ये आलम है कि अब
पेड़ पर शहद का छत्ता भी ग़लत लगता है
एक ही तीर है तरकश में तो उजलत न करो
ऐसे मौक़े पे निशाना भी ग़लत लगता है
शाख़-ए-गुल काट के त्रिशूल बना देते हो
क्या गुलाबों का महकना भी ग़लत लगता है
Friday, March 26, 2021
मुनगे का पेड़ / त्रिजुगी कौशिक
घर की बाड़ी में
मुनगे क एक पेड़ है
वह गाहे-बगाहे की साग
प्रसूता के लिए तो पकवान है
मकान बनाने के लिए उसे काटना था
पर किसी की हिम्मत नहीं
उसमें बसी हैं
माँ की स्मृतियाँ
जैसे नीम्बू के पेड़ में दीदी की
पिताजी की-- तालाब में लगाए
बड़ में
नतमस्तक हो जाता है हर कोई
उसी तरह
नीम्बू मुनगे का यह पेड़ है
पहले हम खेतों को
पेड़ों की वज़ह से पहचानते थे
हमारा बचपन गुज़रता था
आम, इमली, अमरूद, जाम के पेड़ों में
अब जिस तरह कट रहे हैं पेड़
स्मृतियाँ कट रही हैं
बदलता जा रहा है गाँव
भूलता जा रहा है गाँव ।
Thursday, March 25, 2021
A Thing of Beauty / John Keats
A thing of beauty is a joy for ever:
Its lovliness increases; it will never
Pass into nothingness; but still will keep
A bower quiet for us, and a sleep
Full of sweet dreams, and health, and quiet breathing.
Therefore, on every morrow, are we wreathing
A flowery band to bind us to the earth,
Spite of despondence, of the inhuman dearth
Of noble natures, of the gloomy days,
Of all the unhealthy and o'er-darkn'd ways
Made for our searching: yes, in spite of all,
Some shape of beauty moves away the pall
From our dark spirits. Such the sun, the moon,
Trees old and young, sprouting a shady boon
For simple sheep; and such are daffodils
With the green world they live in; and clear rills
That for themselves a cooling covert make
'Gainst the hot season; the mid-forest brake,
Rich with a sprinkling of fair musk-rose blooms:
And such too is the grandeur of the dooms
We have imagined for the mighty dead;
An endless fountain of immortal drink,
Pouring unto us from the heaven's brink.
Wednesday, March 24, 2021
दीन / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
सह जाते हो
उत्पीड़न की क्रीड़ा सदा निरंकुश नग्न,
हृदय तुम्हारा दुबला होता नग्न,
अन्तिम आशा के कानों में
स्पन्दित हम - सबके प्राणों में
अपने उर की तप्त व्यथाएँ,
क्षीण कण्ठ की करुण कथाएँ
कह जाते हो
और जगत की ओर ताक कर
दुःख हृदय का क्षोभ त्याग कर,
सह जाते हो।
कह जाते हो-
"यहाँ कभी मत आना,
उत्पीड़न का राज्य दुःख ही दुःख
यहाँ है सदा उठाना,
क्रूर यहाँ पर कहलाता है शूर,
और हृदय का शूर सदा ही दुर्बल क्रूर;
स्वार्थ सदा ही रहता परार्थ से दूर,
यहाँ परार्थ वही, जो रहे
स्वार्थ से हो भरपूर,
जगत की निद्रा, है जागरण,
और जागरण जगत का - इस संसृति का
अन्त - विराम - मरण
अविराम घात - आघात
आह ! उत्पात!
यही जग - जीवन के दिन-रात।
यही मेरा, इनका, उनका, सबका स्पन्दन,
हास्य से मिला हुआ क्रन्दन।
यही मेरा, इनका, उनका, सबका जीवन,
दिवस का किरणोज्ज्वल उत्थान,
रात्रि की सुप्ति, पतन;
दिवस की कर्म - कुटिल तम - भ्रान्ति
रात्रि का मोह, स्वप्न भी भ्रान्ति,
सदा अशान्ति!"
Tuesday, March 23, 2021
A Night Thought / William Wordsworth
Lo! where the Moon along the sky
Sails with her happy destiny;
Oft is she hid from mortal eye
Or dimly seen,
But when the clouds asunder fly
How bright her mien!
Far different we--a froward race,
Thousands though rich in Fortune's grace
With cherished sullenness of pace
Their way pursue,
Ingrates who wear a smileless face
The whole year through.
If kindred humours e'er would make
My spirit droop for drooping's sake,
From Fancy following in thy wake,
Bright ship of heaven!
A counter impulse let me take
And be forgiven.
Monday, March 22, 2021
Night / William Blake
The sun descending in the west,
The evening star does shine;
The birds are silent in their nest,
And I must seek for mine.
The moon, like a flower,
In heaven's high bower,
With silent delight
Sits and smiles on the night.
Farewell, green fields and happy groves,
Where flocks have took delight.
Where lambs have nibbled, silent moves
The feet of angels bright;
Unseen they pour blessing,
And joy without ceasing,
On each bud and blossom,
And each sleeping bosom.
They look in every thoughtless nest,
Where birds are covered warm;
They visit caves of every beast,
To keep them all from harm.
If they see any weeping
That should have been sleeping,
They pour sleep on their head,
And sit down by their bed.
When wolves and tigers howl for prey,
They pitying stand and weep;
Seeking to drive their thirst away,
And keep them from the sheep.
But if they rush dreadful,
The angels, most heedful,
Receive each mild spirit,
New worlds to inherit.
And there the lion's ruddy eyes
Shall flow with tears of gold,
And pitying the tender cries,
And walking round the fold,
Saying, 'Wrath, by His meekness,
And, by His health, sickness
Is driven away
From our immortal day.
'And now beside thee, bleating lamb,
I can lie down and sleep;
Or think on Him who bore thy name,
Graze after thee and weep.
For, washed in life's river,
My bright mane for ever
Shall shine like the gold
As I guard o'er the fold.'
Sunday, March 21, 2021
सपने जो सच हैं / उत्तिमा केशरी
सुख के सपने की छाँव तले
जब वह सोती है हर रात
मानिनी की तरह
तब दीख पड़ता है
नायक का वजूद
अतीव सुन्दर
सुघड़ सौम्य
अति संवेदनशील
मानो अजन्ता की
मूर्त्तियों की तरह
तराश लिया उसका गठीला जिस्म
कमान-सी खींची
भौंहें
कजरारी आँखें
गुलाबी होंठ
और
इनके मध्य
एक सुखद सपना
जो सच लगता है।
Saturday, March 20, 2021
मौजूद है / आफ़ताब हुसैन
इस अँधेरे में जो थोड़ी रौशनी मौजूद है
दिल में उस की याद शायद आज भी मौजूद है
वक़्त की वहशी हवा क्या क्या उड़ा कर ले गई
ये भी क्या कम है कि कुछ उस की कमी मौजूद है
कौन जाने आने वाले पल में ये भी हो न हो
धूप के हमराह ये जो छाँव सी मौजूद है
Friday, March 19, 2021
A Glass Of Water / Gajanan Mishra
Give me a glass of water
To drink in this summer.
Give me a glass of water,
I have nothing to drink,
The area is full of water, though.
Give me a bowl of rice
Or a bread to eat,
I want nothing more than this.
Give me a bowl of rice
To eat, on this day.
On this day, I am hungry.
I am being eaten by
My hunger, my thirst,
That are within me.
Thursday, March 18, 2021
Ships That Pass In The Night / Paul Laurence Dunbar
Out in the sky the great dark clouds are massing;
I look far out into the pregnant night,
Where I can hear the solemn booming gun
And catch the gleaming of a random light,
That tells me that the ship I seek
is passing, passing.
My tearful eyes my soul's deep hurt are glassing;
For I would hail and check that ship of ships.
I stretch my hands imploring, cry aloud,
My voice falls dead a foot from mine own lips,
And but its ghost doth reach that vessel, passing, passing.
O Earth, O Sky, O Ocean, both surpassing,
O heart of mine, O soul that dreads the dark!
Is there no hope for me? Is there no way
That I may sight and check that speeding bark
Which out of sight and sound is passing, passing?
Wednesday, March 17, 2021
वह प्रेम करेगी / उत्पल बैनर्जी
वह प्रेम करेगी --
और चाँद खिल उठेगा आकाश में
सुनाई देगा बादलों का कोरस,
वह प्रेम करेगी --
और मैं भेज दूँगा बादलों को
जलते हुए रेगिस्तानों में,
वह प्रेम करेगी --
और आकाश में दिखाई देंगे इन्द्रधनुष के सातों रंग
वह प्रेम करेगी --
और थम जाएगा हिरोशिमा का ताण्डव
लातूर का भूकम्प
अफ़्रीका के अरण्य में पहली बार उगेगा सूरज
सागर की छाती पर फिर कोई जहाज़ नहीं डूबेगा
फिर विसुवियस के पहाड़ आग नहीं उगलेंगे,
वह प्रेम करेगी --
और मैं देखूँगा अनन्त में डूबा आकाश
देखूँगा -- मोर के पंखों का रंग,
प्यार करूँगा -- जिन्हें कभी किसी ने प्यार नहीं किया,
देखूँगा -- लहरों के उल्लास में
उफनती मछलियाँ
पंछी ... विषधर साँपों के अनोखे खेल
ऋतुमती पृथ्वी
झीलों का गहरा पानी
अज्ञात की ओर जाती अनन्त चीटियों की कतार,
किसी प्राचीन आकाशगंगा में हम दोनों खेलेंगे
चाँद और सूरज की गेंद से,
वह प्रेम करेगी --
और मैं उसे भेजूँगा
अंजुरी भर धूप
एक मुट्ठी आसमान
एक टुकड़ा चाँद
थोड़े-से तारे,
वह प्रेम करेगी --
और किसी दिन
जाकर न लौट पाने की
असम्भव दूरी से
जो आख़िरी बार हाथ हिलाकर
मन ही मन केवल कह सकूँ विदा ...
जीवन के किसी मधुरतम क्षण में
तिस्ता किनारे सौंपना मुझे
तुम्हारी आँखों का एक बून्द पानी
और हृदय का थोड़ा-सा प्यार!
Tuesday, March 16, 2021
Mother Doesn't Want A Dog / Judith Viorst
Mother doesn't want a dog.
Mother says they smell,
And never sit when you say sit,
Or even when you yell.
And when you come home late at night
And there is ice and snow,
You have to go back out because
The dumb dog has to go.
Mother doesn't want a dog.
Mother says they shed,
And always let the strangers in
And bark at friends instead,
And do disgraceful things on rugs,
And track mud on the floor,
And flop upon your bed at night
And snore their doggy snore.
Mother doesn't want a dog.
She's making a mistake.
Because, more than a dog, I think
She will not want this snake.
Monday, March 15, 2021
चोंच लड़ियाँ / शैलेंद्र सिंह सोढ़ी
सोणी सोणी सी मोहब्बत ने करया है तंग
हये कुडी तेरी सोहबत ने करया है तंग
रंगीन फिलम जैसे दिखते है रंग
भंगड़ा जी पाये है मेरी उमंग
सतलुज में एक, समुन्दर, नाचे, नाचे
अम्बरसर और जलंधर, नाचे, नाचे
रंगरलियाँ.. हो गईयाँ..
रंगरलियाँ.. हो गईयाँ..
तेरी मेरी मेरी तेरी चोंच लड़ियाँ
उड़ी उड़ी मै उड़ी उड़ी मै
जैसे पतंग
हैगा हैगा हैगा मेरे
उत्ते इशके दा रंग
मेरे मन विच हये हये तन विच
तुम्बी सी बाजे..
संयों नी संयों मै होयी मलंग
अखिंयों से अखियों की मीठी सी जंग
याद तेरी विच हिच विच हिच विच
हिचकी सी लागे
सोणी सोणी सी मोहब्बत ने करया है तंग
हये कुडी तेरी सोहबत ने करया है तंग
रंगीन फिलम जैसे दिखते है रंग
भंगड़ा जी पाये है मेरी उमंग
पोरुस दे विच सिकन्दर, नाचे, नाचे
अप्रैल मई विच दिसम्बर, नाचे, नाचे
रंगरलियाँ, हाये हो गईयाँ
रंगरलियाँ, हाये हो गईयाँ
तेरी मेरी मेरी तेरी चोंच लड़ियाँ
सुण सुण सुण सुण कुड़िये होया मै दंग
बस ऐद्धाँ बस ऐद्धाँ रेहणा अंग संग
तेरे उत्तों हये हये उत्तों ऐ जग वाराँ
इक तू ही इक तू ही मैनू पसंद
प्रीत दी खुशबू ना हो जाये मंद
मेरी जिद है तेरी मेरी जिद ऐ हँस के गुजांराँ
सोणी सोणी सी मोहब्बत ने करया है तंग
मुड्या तेरी सोहबत ने करया है तंग
रंगीन फिलम जैसे दिखते है रंग
गिद्दा जी पाये है मेरी उमंग
जिस वल विक्खाँ, कलन्दर, नाचे, नाचे
बंदे अन्दर पैगम्बर, नाचे, नाचे
रंगरलियाँ.. हो गईयाँ.. हाँ
रंगरलियाँ.. हो गईयाँ..
तेरी मेरी मेरी तेरी चोंच लड़ियाँ
Sunday, March 14, 2021
पुन्न के काम आये हैं / दिविक रमेश
सब के सब मर गए
उनकी घरवालियों को
कुछ दे दिवा दो भाई
कैसा विलाप कर रही हैं।
"कैसे हुआ ?"
वही पुरानी कथा
काठी गाल रहे थे
लगता है ढह पड़ी
सब्ब दब गये
होनी को कौन रोक सकता है
अरी, अब सबर भी करो
पुन्न के काम ही तो आये हैं
लगता है
कुआँ बलि चाहता था
"हाँ
जब भी कुआँ बलि चाहता है
बेचारे मजदूरों पर ही कहर ढहाता है।"
Thursday, March 11, 2021
In The Park / Gwen Harwood
She sits in the park. Her clothes are out of date.
Two children whine and bicker, tug her skirt.
A third draws aimless patterns in the dirt
Someone she loved once passed by – too late
to feign indifference to that casual nod.
“How nice” et cetera. “Time holds great surprises.”
From his neat head unquestionably rises
a small balloon…”but for the grace of God…”
They stand a while in flickering light, rehearsing
the children’s names and birthdays. “It’s so sweet
to hear their chatter, watch them grow and thrive, ”
she says to his departing smile. Then, nursing
the youngest child, sits staring at her feet.
To the wind she says, “They have eaten me alive.”
Wednesday, March 10, 2021
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में / कबीर
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥
जो सुख पाऊँ राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥
भला बुरा सब का सुनलीजै
कर गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥
आखिर यह तन छार मिलेगा
कहाँ फिरत मग़रूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥
प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥
कहत कबीर सुनो भयी साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥
Monday, March 8, 2021
औरत होना... / अनिता भारती
अपने सपने
अपनी जान
अपने प्राण
स्पर्श कर अपने आप को इक बार
फिर देख
औरत होना
कोई गुनाह नहीं...!
Sunday, March 7, 2021
जो वर्चुअल रिश्ते बनाते हैं / गिरिजा अरोड़ा
जो वर्चुअल रिश्ते बनाते हैं
जाने कहाँ अपनी भावनाएँ छिपाते हैं
मोबाइल, कम्प्यूटर
आखिर इंसानी फैक्टरियों में बनें हैं
ईश्वरीय देन तो
वही दिल है
जो दुखता है तो
ठहरने के लिए एक कंधा ढूँढता है
कैसे दुखन को एक स्क्रीन में दबाते हैं
जो वर्चुअल रिश्ते बनाते हैं
वो वक्त भी दूर नहीं गया
जब हल्की सी ठोकर पर
ढेरों आँसू बहाते थे
रूमालों की अपेक्षा नहीं
अब केवल
फीलिंग सैड के इमोटिकॉन से
खुद को सहलाते हैं
जो वर्चुअल रिश्ते बनाते हैं
वो भी याद होगा
जब तीखे व्यंग से लबालब तीर
रिश्ते की अहमियत जताते थे
ये कड़वाहट छिपा लेते हैं
प्यार भरी संवेदनाए लिए
रोज़ रोज़ दिख जाते हैं
जो वर्चुअल रिश्ते बनाते हैं
जो टूट चुके थे रिश्ते, जो छूट चुके थे लोग
ऑनलाइन कुछ फिर मिल गए हैं
फटते हुए कपड़ों में जैसे पेबंद लग गए हैं
रूठ कर सिर पटकते नहीं
काँच की तरह चटकते नहीं
बहुत ज्यादा नहीं मिलता इन्हें
अपनों की फोटो से ही
अपनों को करीब पाते हैं
जो वर्चुअल रिश्ते बनाते हैं
Saturday, March 6, 2021
Five Senses / Judith Wright
Now my five senses
gather into a meaning
all acts, all presences;
and as a lily gathers
the elements together,
in me this dark and shining,
that stillness and that moving,
these shapes that spring from nothing,
become a rhythm that dances,
a pure design.
While I'm in my five senses
they send me spinning
all sounds and silences,
all shape and colour
as thread for that weaver,
whose web within me growing
follows beyond my knowing
some pattern sprung from nothing-
a rhythm that dances
and is not mine.
Friday, March 5, 2021
The Snake Charmer / Sarojini Naidu
Whither dost thou hide from the magic of my flute-call?
In what moonlight-tangled meshes of perfume,
Where the clustering keovas guard the squirrel's slumber,
Where the deep woods glimmer with the jasmine's bloom?
I'll feed thee, O beloved, on milk and wild red honey,
I'll bear thee in a basket of rushes, green and white,
To a palace-bower where golden-vested maidens
Thread with mellow laughter the petals of delight.
Whither dost thou loiter, by what murmuring hollows,
Where oleanders scatter their ambrosial fire?
Come, thou subtle bride of my mellifluous wooing,
Come, thou silver-breasted moonbeam of desire!
Thursday, March 4, 2021
इसलिए राह संघर्ष की हमने चुनी / वशिष्ठ अनूप
इसलिए राह संघर्ष की हमने चुनी
ज़िंदगी आँसुओं में नहाई न हो,
शाम सहमी न हो, रात हो ना डरी
भोर की आँख फिर डबडबाई न हो।
सूर्य पर बादलों का न पहरा रहे
रोशनी रोशनाई में डूबी न हो,
यूँ न ईमान फुटपाथ पर हो खड़ा
हर समय आत्मा सबकी ऊबी न हो;
आसमाँ में टँगी हों न खुशहालियाँ
कैद महलों में सबकी कमाई न हो।
कोई अपनी खुशी के लिए ग़ैर की
रोटियाँ छीन ले, हम नहीं चाहते,
छींटकर थोड़ा चारा कोई उम्र की
हर खुशी बीन ले, हम नहीं चाहते;
हो किसी के लिए मखमली बिस्तरा
और किसी के लिए इक चटाई न हो।
अब तमन्नाएँ फिर ना करें खुदकुशी
ख़्वाब पर ख़ौफ की चौकसी ना रहे,
श्रम के पाँवों में हों ना पड़ी बेड़ियां
शक्ति की पीठ अब ज़्यादती ना सहे,
दम न तोड़े कहीं भूख से बचपना
रोटियों के लिए फिर लड़ाई न हो।
जिस्म से अब न लपटें उठें आग की
फिर कहीं भी न कोई सुहागन जले,
न्याय पैसे के बदले न बिकता रहे
क़ातिलों का मनोबल न फूले–फले;
क़त्ल सपने न होते रहें इस तरह
अर्थियों में दुल्हन की विदाई न हो।
Wednesday, March 3, 2021
रात हुई / फ़रहत एहसास
तुम को पा लेने की धुन में
दुनिया ओढ़ी
रंग-बिरंगे कपड़े पहने
पेशानी पर सूरज बाँधा
आँगन भर में धूप बिछाई
दीवारों पर सब्ज़ा डाला
फूलों पत्तों से अपनी चौखट रंगवाई
मौसम आए
मौसम बीते
सूरज निकला धूप खिली
फिर धूप चढ़ी और और चढ़ी
फिर शाम हुई
फिर गहरी काली रात हुई
Tuesday, March 2, 2021
Don't Go Far Off / Pablo Neruda
Don't go far off, not even for a day, because --
because -- I don't know how to say it: a day is long
and I will be waiting for you, as in an empty station
when the trains are parked off somewhere else, asleep.
Don't leave me, even for an hour, because
then the little drops of anguish will all run together,
the smoke that roams looking for a home will drift
into me, choking my lost heart.
Oh, may your silhouette never dissolve on the beach;
may your eyelids never flutter into the empty distance.
Don't leave me for a second, my dearest,
because in that moment you'll have gone so far
I'll wander mazily over all the earth, asking,
Will you come back? Will you leave me here, dying?
Monday, March 1, 2021
For Once, Then, Something / Robert Frost
Others taunt me with having knelt at well-curbs
Always wrong to the light, so never seeing
Deeper down in the well than where the water
Gives me back in a shining surface picture
Me myself in the summer heaven godlike
Looking out of a wreath of fern and cloud puffs.
Once, when trying with chin against a well-curb,
I discerned, as I thought, beyond the picture,
Through the picture, a something white, uncertain,
Something more of the depths—and then I lost it.
Water came to rebuke the too clear water.
One drop fell from a fern, and lo, a ripple
Shook whatever it was lay there at bottom,
Blurred it, blotted it out. What was that whiteness?
Truth? A pebble of quartz? For once, then, something.
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