Wednesday, February 24, 2021
इसी काया में मोक्ष / दिनेश कुशवाह
बहुत दिनों से मैं
किसी ऐसे आदमी से मिलना चाहता हूं
जिसे देखते ही लगे
इसी से तो मिलना था।
एक ऐसा आदमी जिसे पाकर
यह देह रोज़ ही जन्मे, रोज़ ही मरे
झरे हरसिंगार की तरह
जिसे पाकर मन
फूलकर कुप्पा हो जाए।
बहुत दिनों से मैं
किसी ऐसे आदमी से मिलना चाहता हूँ
जिसे देखते ही लगे
अगर पूरी दुनिया अपनी आँखों नहीं देखी
तो भी यह जन्म व्यर्थ नहीं गया।
बहुत दिनों से मैं
किसी को अपना कलेजा
निकालकर दे देना चाहता हूँ
मुद्दतों से मेरे सीने में
भर गया है अपार मर्म
मैं चाहता हूं कोई
मेरे पास भूखे शिशु की तरह आए
कोई मथ डाले मेरे भीतर का समुद्र
और निकाल ले सारे रतन।
बहुत दिनों से मैं
किसी ऐसे आदमी से मिलना चाहता हूँ
जिसे देखते ही
भक्क से बर जाए आँखों में लौ
और लगे कि दीया लेकर खोजने पर ही
मिलेगा धरती पर ऐसा मनुष्य
कि पा गया मैं उसे
जिसे मेरे पुरखे गंगा नहाकर पाते थे
बहुत दिनों से मैं
जानना चाहता हूँ
कैसा होता है मन की सुन्दरता का मानसरोवर
छूना चाहता हूँ तन की सुन्दरता का शिखर
मैं चाहता हूँ मिले कोई ऐसा
जिससे मन हज़ार बहानो से मिलना चाहे।
बहुत दिनों से मैं
किसी ऐसे आदमी से मिलना चाहता हूँ
जिसे देखते ही लगे
करोड़ों जन्मों के पाप मिट गए
कट गए सारे बंधन
कि मोक्ष मिल गया इसी काया में।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
घरेलू स्त्री / ममता व्यास
जिन्दगी को ही कविता माना उसने जब जैसी, जिस रूप में मिली खूब जतन से पढ़ा, सुना और गुना... वो नहीं जानती तुम्हारी कविताओं के नियम लेकिन उ...
-
चाँदनी की पाँच परतें, हर परत अज्ञात है। एक जल में एक थल में, एक नीलाकाश में। एक आँखों में तुम्हारे झिलमिलाती, एक मेरे बन रहे विश्वास...
-
Chôl Chôl Chôl Urddhô gôgône baje madôl Nimne utôla dhôrôni tôl Ôrun prater tôrun dôl Chôlre Chôlre Chôl Chôl Chôl Chôl.. Ushar dua...
-
All about the country, From earliest teens, Dark unmarried mothers, Fair game for lechers — Bosses and station hands, And in town and city...
No comments:
Post a Comment