Thursday, January 21, 2021
गिलहरी / नरेश मेहन
पेड़ से उतर कर
बहुत चहकती-फुदकती थी
मेरे आंगन में
बच्चों की तरह
कभी पूँछ हिलाती
मेरे गुड़िया की तरह
कभी मुंह बनाती
अठखेलियाँ करती
कभी पेड़ पर
कभी मुंडेर पर
चढ़ती-उतरती
निकल जाती पास से
एक बच्ची की तरह
मुझे
बहुत अच्छी लगती थी
वह गिलहरी
ठीक मेरी बेटी की तरह ।
मैं चाहता था
यूं ही खेलती रहे
मेरे आंगन में
मेरी बच्ची
और यह गिलहरी ।
मगर एक दिन
काट दिया गया वह पेड़
एक विशाल भवन के लिए ।
पेड़ के साथ ही
चली गई गिलहरी
न जाने कहाँ
कर गई सूना मेरा जहाँ
ठीक उसी तरह
चली गई थी
पराई होकर
जैसे
मेरी बेटी!
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