Friday, January 1, 2021
मुस्कानों के बीज / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु
पलकों के तट चूमकर, कहे नयन-जलधार ।
बीते हैं पल दर्द के, हुआ नया भिनसार ।।
जीवन कहते हैं जिसे, है सुख-दुख का मेल ।
ख़ुशियाँ दो पल जो मिलें, लेकर दुख भी झेल ।।
अब खूँटी पर टाँग दे, नफ़रत-भरी कमीज़ ।
बोना है नव वर्ष में, मुस्कानों के बीज ।।
भाई ने परदेस से, किया बहिन को फोन ।
तेरी खुशियों से बड़ा, मेरा जग में कौन ।।
घर में या परदेस में ,सबसे मुझको प्यार ।
सबके आँगन में खिले, फूलों का संसार ।।
नए साल से हम कहें-करलो दुआ कुबूल ।
माफ़ करें हर एक की, जो-जो खटकी भूल ।।
मुड़-मुड़कर क्या देखना, पीछे उड़ती धूल ।
फूलों की खेती करो, हट जाएँगे शूल ।।
अधरों पर मुस्कान ले, कहता है नव वर्ष ।
छोड़ उदासी को यहाँ, आ पहुँचा है हर्ष ।।
जितनी खुद से है हमें ,जीवन की हर आस ।
उससे भी ज़्यादा हमें, तुम पर है विश्वास ।।
जिसके मन में नेह है,सच्ची है हर साँस ।
और मीत से प्यार है, वह पहले ही पास ।।
तुम जैसे होंगे जहाँ ,इस धरती पर लोग ।
स्वर्ग बनेगे घर -नगर , मिट जाएँगे सोग ॥
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