Thursday, December 3, 2020
तुम कभी थे सूर्य / चंद्रसेन विराट
तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये।
थे कभी मुख्पृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये॥
यवनिका बदली कि सारा दृ बदला मंच का।
थे कभी दुल्हा स्वयं बारातियों तक आ गये॥
वक्त का पहिया किसे कुचले कहाँ कब क्या पता।
थे कभी रथवान अब बैसाखियों तक आ गये॥
देख ली सत्ता किसी वारांगना से कम नहीं।
जो कि अध्यादेश थे खुद अर्जियों तक आ गये॥
देश के संदर्भ में तुम बोल लेते खूब हो।
बात ध्वज की थी चलाई कुर्सियों तक आ गये॥
प्रेम के आख्यान में तुम आत्मा से थे चले।
घूम फिर कर देह की गोलाईयों तक आ गये॥
कुछ बिके आलोचकों की मानकर ही गीत को।
तुम ॠचाएं मानते थे गालियों तक आ गये॥
सभ्यता के पंथ पर यह आदमी की यात्रा।
देवताओं से शुरू की वहशियों तक आ गये॥
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
घरेलू स्त्री / ममता व्यास
जिन्दगी को ही कविता माना उसने जब जैसी, जिस रूप में मिली खूब जतन से पढ़ा, सुना और गुना... वो नहीं जानती तुम्हारी कविताओं के नियम लेकिन उ...
-
चाँदनी की पाँच परतें, हर परत अज्ञात है। एक जल में एक थल में, एक नीलाकाश में। एक आँखों में तुम्हारे झिलमिलाती, एक मेरे बन रहे विश्वास...
-
Chôl Chôl Chôl Urddhô gôgône baje madôl Nimne utôla dhôrôni tôl Ôrun prater tôrun dôl Chôlre Chôlre Chôl Chôl Chôl Chôl.. Ushar dua...
-
All about the country, From earliest teens, Dark unmarried mothers, Fair game for lechers — Bosses and station hands, And in town and city...
No comments:
Post a Comment