Friday, October 2, 2020
बापू / रामधारी सिंह "दिनकर"
संसार पूजता जिन्हें तिलक,
रोली, फूलों के हारों से,
मैं उन्हें पूजता आया हूँ
बापू! अब तक अंगारों से
अंगार, विभूषण यह उनका
विद्युत पीकर जो आते हैं
ऊँघती शिखाओं की लौ में
चेतना नई भर जाते हैं
उनका किरीट जो भंग हुआ
करते प्रचंड हुंकारों से
रोशनी छिटकती है जग में
जिनके शोणित के धारों से
झेलते वह्नि के वारों को
जो तेजस्वी बन वह्नि प्रखर
सहते हीं नहीं, दिया करते
विष का प्रचंड विष से उत्तर
अंगार हार उनका, जिनकी
सुन हाँक समय रुक जाता है
आदेश जिधर का देते हैं
इतिहास उधर झुक जाता है
अंगार हार उनका, कि मृत्यु ही
जिनकी आग उगलती है
सदियों तक जिनकी सही
हवा के वक्षस्थल पर जलती है
पर तू इन सबसे परे; देख
तुझको अंगार लजाते हैं,
मेरे उद्वेलित-जलित गीत
सामने नहीं हो पाते हैं
तू कालोदधि का महास्तम्भ, आत्मा के नभ का तुंग केतु
बापू! तू मर्त्य, अमर्त्य, स्वर्ग, पृथ्वी, भू, नभ का महा सेतु
तेरा विराट यह रूप कल्पना पट पर नहीं समाता है
जितना कुछ कहूँ मगर, कहने को शेष बहुत रह जाता है
लज्जित मेरे अंगार; तिलक माला भी यदि ले आऊँ मैं
किस भांति उठूँ इतना ऊपर? मस्तक कैसे छू पाऊँ मैं
ग्रीवा तक हाथ न जा सकते, उँगलियाँ न छू सकती ललाट
वामन की पूजा किस प्रकार, पहुँचे तुम तक मानव, विराट
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
घरेलू स्त्री / ममता व्यास
जिन्दगी को ही कविता माना उसने जब जैसी, जिस रूप में मिली खूब जतन से पढ़ा, सुना और गुना... वो नहीं जानती तुम्हारी कविताओं के नियम लेकिन उ...
-
चाँदनी की पाँच परतें, हर परत अज्ञात है। एक जल में एक थल में, एक नीलाकाश में। एक आँखों में तुम्हारे झिलमिलाती, एक मेरे बन रहे विश्वास...
-
Chôl Chôl Chôl Urddhô gôgône baje madôl Nimne utôla dhôrôni tôl Ôrun prater tôrun dôl Chôlre Chôlre Chôl Chôl Chôl Chôl.. Ushar dua...
-
All about the country, From earliest teens, Dark unmarried mothers, Fair game for lechers — Bosses and station hands, And in town and city...
No comments:
Post a Comment