बिछ जाती जब नील गगन में, मेघों की चादर काली।
छिप जाती तब क्षण-भर ही में, तारों की झिलमिल जाली॥
लाली फैला जाती नभ में, दिनकर की किरणें भोली।
मानों बिखर पड़ी अंचल में, पूजा की अन्तिम रोली॥
आँसू की बूँदे गिरती जब, ले अपना संचित अनुराग।
अंकित कर जातीं कपोल पर, अपनी अन्तिम दवि के दाग॥
महायात्रा का प्रदीप भी, पल भर ही में बुझ जाता।
क्षीण ज्योति में कोई चुपके, अंतिम सुषमा कह जाता॥
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घरेलू स्त्री / ममता व्यास
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Chôl Chôl Chôl Urddhô gôgône baje madôl Nimne utôla dhôrôni tôl Ôrun prater tôrun dôl Chôlre Chôlre Chôl Chôl Chôl Chôl.. Ushar dua...
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