अज्ज दी शाम
इह गोले कबूतर रंगी
मैनूं मेरे वांग ही
मायूस नज़र आई है
दिल 'ते लै घटिया जहे
होन दा अहसास
काहवा-खाने च मेरे नाल
चली आई है ।
अज्ज दी शाम
इह गोले कबूतर रंगी
मैनूं मेरे वांग ही
मायूस नज़र आई है ।
अज्ज दी शाम
इह गोले कबूतर रंगी
मैनूं इक डैण
नज़र आई है
जो मेरी सोच दे
सिव्यां च कई वार
मैनूं नंगी अलफ़
घुंमदी नज़र आई है
अज्ज दी शाम
इह गोले कबूतर रंगी
काहवा-खाने च मेरे नाल
चली आई है ।
अज्ज दी शाम
इह गोले कबूतर रंगी
पालतू सप्प कोई
मैनूं नज़र आई है
जो इस शहर-सपेरे दी
हुसीं कैद 'चों छुट्ट के
मार के डंग, कलेजे 'ते
हुने आई है
अज्ज दी शाम
इह गोले कबूतर रंगी
काहवा-खाने च मेरे नाल
चली आई है ।
अज्ज दी शाम
इह गोले कबूतर रंगी
मैनूं लंमूबे दी
नार नज़र आई है
जिद्ही मांग 'चों ज़रदारी ने
हाए, पूंझ के संधूर
अफ़रीका दी दहलीज़ 'ते
कर विधवा बिठाई है
अज्ज दी शाम
इह गोले कबूतर रंगी
काहवा-खाने च मेरे नाल
चली आई है ।
अज्ज दी शाम
इह गोले कबूतर रंगी
ऐसी मनहूस
ते बदशकल शहर आई है
जेहड़े शहर 'च
इस दुद्ध मिले काहवे दे रंग दी
मासूम गुनाह वरगी
मुहब्बत मैं गवाई है ।
अज्ज दी शाम
इह गोले कबूतर रंगी
मैनूं मेरे वांग ही
मायूस नज़र आई है
दिल 'ते लै घटिया जेहे
होन दा अहसास
काहवा-खाने च मेरे नाल
चली आई है ।
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