कभी बहुत है कभी ध्यान तेरा कुछ कम है
कभी हवा है कभी आँधियों का मौसम है
अभी न तोड़ा गया मुझ से कै़द-ए-हस्ती को
अभी शराब-ए-जुनूँ का नशा भी मद्धम है
कि जैसे साथ तिरे ज़िंदगी गुज़रती हो
तिरा ख़याल मिरे साथ ऐसे पैहम है
तमाम फ़िक्र-ए-ज़मान-ओ-मकाँ से छूट गई
सियाह-कारी-ए-दिल मुझे को ऐसा मरहम है
मैं ख़ुद मुसाफ़िर-ए-दिल हूँ उसे न रोकुँगी
वो ख़ुद ठहर न सकेगा जो कै़दी-ए-ग़म है
वौ शौक़-ए-तेज़-रवी है कि देखता है जहाँ
ज़मीं पे आग लगी आसमान बरहम है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
घरेलू स्त्री / ममता व्यास
जिन्दगी को ही कविता माना उसने जब जैसी, जिस रूप में मिली खूब जतन से पढ़ा, सुना और गुना... वो नहीं जानती तुम्हारी कविताओं के नियम लेकिन उ...
-
चाँदनी की पाँच परतें, हर परत अज्ञात है। एक जल में एक थल में, एक नीलाकाश में। एक आँखों में तुम्हारे झिलमिलाती, एक मेरे बन रहे विश्वास...
-
Chôl Chôl Chôl Urddhô gôgône baje madôl Nimne utôla dhôrôni tôl Ôrun prater tôrun dôl Chôlre Chôlre Chôl Chôl Chôl Chôl.. Ushar dua...
-
All about the country, From earliest teens, Dark unmarried mothers, Fair game for lechers — Bosses and station hands, And in town and city...
No comments:
Post a Comment