एक लड़की ऐसी है जो बचपन में बड़ी हो गई,
शोर से इस रोज़मर्रा में अनसुनी सी ध्वनि हो गई।
हल्के फुल्के कंधों पे उत्तरदायित्व से सनी हो गई,
भागते से जीवन में रुकी सी खड़ी हो गई।
सिलवटों से छुटपन में क्षण में घड़ी हो गई,
कभी हंसी में बहती एक अश्रु की बूंद, मल्हार सी लड़ी हो गई।
पुरुष के छोटे पौरुष की बड़ी सी तड़ी हो गई,
नर-अहंकार के मरूस्थल में घास की पत्ती सी हरी हो गई।
सैंकड़ो मर्द दानवों में नन्ही सी परी हो गई,
अल्पआयु की वायु में भी गोद कुछ भरी हो गई।
आज न फिर पढ़ पाई वो इस बात की कड़ी हो गई,
एक लड़की ऐसी है जो बचपन में बड़ी हो गई।
(Listen to the poet reciting it here)
शोर से इस रोज़मर्रा में अनसुनी सी ध्वनि हो गई।
हल्के फुल्के कंधों पे उत्तरदायित्व से सनी हो गई,
भागते से जीवन में रुकी सी खड़ी हो गई।
सिलवटों से छुटपन में क्षण में घड़ी हो गई,
कभी हंसी में बहती एक अश्रु की बूंद, मल्हार सी लड़ी हो गई।
पुरुष के छोटे पौरुष की बड़ी सी तड़ी हो गई,
नर-अहंकार के मरूस्थल में घास की पत्ती सी हरी हो गई।
सैंकड़ो मर्द दानवों में नन्ही सी परी हो गई,
अल्पआयु की वायु में भी गोद कुछ भरी हो गई।
आज न फिर पढ़ पाई वो इस बात की कड़ी हो गई,
एक लड़की ऐसी है जो बचपन में बड़ी हो गई।
(Listen to the poet reciting it here)
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