इस मुल्क की सड़कों पे निकलो कभी
दिखेंगे तुम्हे कई शर्मा, सिंह और जैन
और उन्ही की भीड़ में होंगे कुछ
ख़ान, अकबर, अहमद और ज़मानी
जिनको न जाने क्यूँ दुनिया बस कह देती है पाकिस्तानी
कभी सोचता हूँ कह भी दिया तो क्या
आखिर हैं तो वो भी इंसान
लेकिन जब अपने दिल के तहखानों को झाँकता हूँ
तो मुझे दिखता है सिर्फ हिन्दुस्तान
बड़े वक़्त से दफ़न कर रखी थी
लेकिन आज मैं सुनाता हूँ अपनी ज़ुबानी
हर उस वक़्त की तकलीफ जब
वो कह देते थे मुझे पाकिस्तानी
इस ही सरज़मीं का हूँ मैं परिंदा
इस ही ज़मीं पे हूँ सही, सालिम और ज़िंदा
लेकिन सिर्फ क्यूँकि पढ़ लेता हूँ नमाज़ और
ईद पे घर पर बन जाती हैं सेवइयाँ, बिरयानी
वो कह देते हैं मुझे पाकिस्तानी
हर वक़्त जब अपना नाम बयां करता हूँ
फिर उसी आवाज़ के आ जाने से
उस लक़ब के मिल जाने से डरता हूँ
और अपने ही मुल्क़ में अपनेपन के लिए मरता हूँ
ऐसा लगता है कोई बंदिश हो, कोई क़ैद हो
या हो गयी हो सज़ा-ए-काला पानी
क्यूंकि हर छोटी-बड़ी बात पे
कह देते हैं वो मुझे पाकिस्तानी
मेरी टोपी सिर्फ मेरा सर ढकने के लिए है
ना किसी को डराने, ना कँपाने के लिए है
थोड़ी मुझे मुहब्बत भी दे दो
अगर मुहब्बत तुम्हारे पास बाँटने के लिए है
लेकिन नहीं !
चाहे मेरा जन-गण-मन पढ़ने में हो रवानी
या तराना-ए-हिन्द की सुना दूँ इन्हे कहानी
ये नहीं मानते! बस कह देते हैं मुझे पाकिस्तानी
और पंद्रह अगस्त आने से पहले सोचता हूँ
फक्र से पहन के निकलूंगा तिरंगे के रंगों की शेरवानी
लेकिन ये लोग चौदह को ही मेरे पास आ कर कह देते हैं
आज़ादी मुबारक हो तुम्हे पाकिस्तानी
किस तरह से इन्हें समझाऊँ
किन अल्फ़ाज़ों में अपना वतनपरस्त होने का यकीं दिलाऊँ
क्या इतिहास पन्ने खोल के दिखाऊँ
या खुद एक नावाक़िफ़ इतिहास बन जाऊँ
इसलिए आज मुझे इन्हें एक जवाब भी देना है
और एक सवाल भी करना है
जवाब ये कि तिरंगे के रँगों में मैंने ढूँढी है अपनी पहचान
इस मुल्क की कामयाबी में है मेरी आन बान और शान
कोई तराना मैं जनता हूँ तो वो हैं राष्ट्र गान
और मैंने अपने दिल पे नक़्श कर रखा है हिन्दुस्तान
तो सवाल का जवाब तुम दे दो -
"कैसे चला जाऊँ मैं पाकिस्तान?"
(Listen to the self-recital by the poet here)
दिखेंगे तुम्हे कई शर्मा, सिंह और जैन
और उन्ही की भीड़ में होंगे कुछ
ख़ान, अकबर, अहमद और ज़मानी
जिनको न जाने क्यूँ दुनिया बस कह देती है पाकिस्तानी
कभी सोचता हूँ कह भी दिया तो क्या
आखिर हैं तो वो भी इंसान
लेकिन जब अपने दिल के तहखानों को झाँकता हूँ
तो मुझे दिखता है सिर्फ हिन्दुस्तान
बड़े वक़्त से दफ़न कर रखी थी
लेकिन आज मैं सुनाता हूँ अपनी ज़ुबानी
हर उस वक़्त की तकलीफ जब
वो कह देते थे मुझे पाकिस्तानी
इस ही सरज़मीं का हूँ मैं परिंदा
इस ही ज़मीं पे हूँ सही, सालिम और ज़िंदा
लेकिन सिर्फ क्यूँकि पढ़ लेता हूँ नमाज़ और
ईद पे घर पर बन जाती हैं सेवइयाँ, बिरयानी
वो कह देते हैं मुझे पाकिस्तानी
हर वक़्त जब अपना नाम बयां करता हूँ
फिर उसी आवाज़ के आ जाने से
उस लक़ब के मिल जाने से डरता हूँ
और अपने ही मुल्क़ में अपनेपन के लिए मरता हूँ
ऐसा लगता है कोई बंदिश हो, कोई क़ैद हो
या हो गयी हो सज़ा-ए-काला पानी
क्यूंकि हर छोटी-बड़ी बात पे
कह देते हैं वो मुझे पाकिस्तानी
मेरी टोपी सिर्फ मेरा सर ढकने के लिए है
ना किसी को डराने, ना कँपाने के लिए है
थोड़ी मुझे मुहब्बत भी दे दो
अगर मुहब्बत तुम्हारे पास बाँटने के लिए है
लेकिन नहीं !
चाहे मेरा जन-गण-मन पढ़ने में हो रवानी
या तराना-ए-हिन्द की सुना दूँ इन्हे कहानी
ये नहीं मानते! बस कह देते हैं मुझे पाकिस्तानी
और पंद्रह अगस्त आने से पहले सोचता हूँ
फक्र से पहन के निकलूंगा तिरंगे के रंगों की शेरवानी
लेकिन ये लोग चौदह को ही मेरे पास आ कर कह देते हैं
आज़ादी मुबारक हो तुम्हे पाकिस्तानी
किस तरह से इन्हें समझाऊँ
किन अल्फ़ाज़ों में अपना वतनपरस्त होने का यकीं दिलाऊँ
क्या इतिहास पन्ने खोल के दिखाऊँ
या खुद एक नावाक़िफ़ इतिहास बन जाऊँ
इसलिए आज मुझे इन्हें एक जवाब भी देना है
और एक सवाल भी करना है
जवाब ये कि तिरंगे के रँगों में मैंने ढूँढी है अपनी पहचान
इस मुल्क की कामयाबी में है मेरी आन बान और शान
कोई तराना मैं जनता हूँ तो वो हैं राष्ट्र गान
और मैंने अपने दिल पे नक़्श कर रखा है हिन्दुस्तान
तो सवाल का जवाब तुम दे दो -
"कैसे चला जाऊँ मैं पाकिस्तान?"
(Listen to the self-recital by the poet here)
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