Tuesday, January 22, 2019

बहुरूपिया / फणीश्वर नाथ रेणु

दुनिया दूषती है 
हँसती है 
उँगलियाँ उठा कहती है ... 
कहकहे कसती है - 
राम रे राम! 
क्या पहरावा है 
क्या चाल-ढाल 
सबड़-झबड़ 
आल-जाल-बाल 
हाल में लिया है भेख? 
जटा या केश? 
जनाना-ना-मर्दाना 
या जन ....... 
अ... खा... हा... हा.. ही.. ही... 
मर्द रे मर्द 
दूषती है दुनिया 
मानो दुनिया मेरी बीवी 
हो-पहरावे-ओढ़ावे 
चाल-ढाल 
उसकी रुचि, पसंद के अनुसार 
या रुचि का 
सजाया-सँवारा पुतुल मात्र, 
मैं 
मेरा पुरुष 
बहुरूपिया।

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