कई दिनों के बाद मिला है
मनचाहा इतवार।
भोर हुई सूरज ने अलसाई आंखें खोलीं
उठ भी जाओ मेमसाब कुछ इतराकर बोलीं
गर्म चाय के साथ रखा है टेबल पर अखबार।
नहीं चलेगा आज घड़ी की सुईयों का आदेश
रानी जी धोएंगी पूरे आधा घण्टा केश
गुड़िया बैठेगी सोफे पे अल्ती पल्ती मार।
कई दिनों के बाद साथ में खाना खाएंगे
खट्टी मीठी बातों को हँसकर दोहराएंगे
गुड्डू को कर लेंगे पूरे सात दिनों का प्यार।
कल से होगी वो ही झंझट बस की रेलमपेल
घर से दफ्तर, दफ्तर से घर दौड़ भाग का खेल
इसीलिए छुट्टी लगती है दिल्ली में त्योहार।
कई दिनों के बाद मिला है
मनचाहा इतवार।
(Listen to the poetess reciting this poem here)
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