Friday, January 18, 2019

जन-मन हाहाकर पथिकवा / ऋता शुक्ल

सोना अइसन माटी चमके
रूपा अइसन मेहनत दमके
हल-किसान-बैलन के जोड़ी
खुरपी, हँसुली, बँसुली ओड़ी
खाद-बीज से भरल चँगेरी
बखरी में गेहूँ के ढेरी
भइल महाजन के मुँह करिया
चइता के रंग चढ़े उमिरिया
नवल पगरिया बन्हेले होरी
लाल चुनरिया पहिरे गोरी
धनिया के झुलनी में मोती
गोबर खेले दोल्हा-पाँती
अइसन गाँव हमार पथिकवा
पीपर के सुख-छाँह पथिकवा

हाकिम, रैयत, धोबी, नउआ
तुरुक, बिरहमन, बुनकर, धुनिया
अल्लाक ताला, राम शिवाला
तसबीही, सुमिरन के माला
सबके ममता ताग बटोरल
अमन-चैन के नदिया उमड़ल
धिया-सिया के उमगल डोला
नेह-छोह से भींजल टोला
रोवत जात कहाँर पथिकवा
अइसन गाँव हमार पथिकवा

उजड़ल धरती बिलखे माता
टूटल नेह-नेम के नाता
भाई से भाई अझुराइल
धनहर खेत रेत बढ़ियाइल
छिनगल तार कबीरा रूसल
सेंध लगवले नफरत पसरल
संझा-बाती रात उदासी
घर-घर जिनिगी थकल उपासी
आक, जवास, धतूरा जिनिगी
बरध बिकाइल, गहना गिरवी
बझल अलाव सपनवा डूबल
तुलसी के चउपाईं छूटल
सगरे भइल अन्हांर पथिकवा
उजड़ल गाँव हमार पथिकवा


परजा के गोहार सुनहइऽ
राजा से जोहार उचरिहऽ
फटल बिवाई, उघरल अँचरा
टुटही मड़ई, ओनहल जियरा
रात नगिनिया फुफकारेले
दिन दूभर संसा भटकेले
राम-रहीमा किसन-करीमा
जहर-घोराइल नस-नस में बा
शकुनी के माथा पर पगिया
लागल गाँव घरन में अगिया
पापी पेट सवाल उचारे
मानुस जनम अकारथ बा रे
ऊजर चुनरी दाग लगवलऽ
कवना ठग से घर लुटववलऽ
काहे मति पर वज्र गिरल बा
होरी ईद मिलन बिसरल बा
मरघट घर, आँगन बँसवारी
अब कवना गाँधी के बारी
अमराई में अगिन राग बा
सिसकत पिंजरा में कोइलिया
टूटल कूल कगार पथिकवा
जन-मन हाहाकार पथिकवा

No comments:

Post a Comment

घरेलू स्त्री / ममता व्यास

जिन्दगी को ही कविता माना उसने जब जैसी, जिस रूप में मिली खूब जतन से पढ़ा, सुना और गुना... वो नहीं जानती तुम्हारी कविताओं के नियम लेकिन उ...