Tuesday, November 20, 2018

आँधियाँ आती थीं लेकिन कभी ऐसा न हुआ / शहरयार

आँधियाँ आती थीं लेकिन कभी ऐसा हुआ
ख़ौफ़ के मारे जुदा शाख़ से पत्ता हुआ
रूह ने पैरहन-ए-जिस्म बदल भी डाला
ये अलग बात किसी बज़्म में चर्चा हुआ
रात को दिन से मिलाने की हवस थी हम को
काम अच्छा था अंजाम भी अच्छा हुआ
वक़्त की डोर को थामे रहे मज़बूती से
और जब छूटी तो अफ़्सोस भी इस का हुआ
ख़ूब दुनिया है कि सूरज से रक़ाबत थी जिन्हें
उन को हासिल किसी दीवार का साया हुआ

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