Tuesday, October 23, 2018

जन्म दिन फिर आ रहा है / हरिवंशराय बच्चन

जन्म दिन फिर आ रहा है!

हूँ नहीं वह काल भूला,
जब खुशी के साथ फूला
सोचता था जन्मदिन उपहार नूतन ला रहा है!
जन्म दिन फिर आ रहा है!

वर्षदिन फिर शोक लाया,
सोच दृग में नीर छाया,
बढ़ रहा हूँ-भ्रम मुझे कटु काल खाता जा रहा है!
जन्म दिन फिर आ रहा है!

वर्षगाँठों पर मुदित मन,
मैं पुनः पर अन्य कारण-
दुखद जीवन का निकटतर अंत आता जा रहा है!
जन्म दिन फिर आ रहा है!

No comments:

Post a Comment

घरेलू स्त्री / ममता व्यास

जिन्दगी को ही कविता माना उसने जब जैसी, जिस रूप में मिली खूब जतन से पढ़ा, सुना और गुना... वो नहीं जानती तुम्हारी कविताओं के नियम लेकिन उ...