Wednesday, September 12, 2018

नदी / प्रेरणा सिन्हा


नदी थी
सुख गयी हूँ
पर यह जान ले
चाहतें बाकी हैं मुझ में
मिलने की सागर से

हस्ती ख़ाक हो चुकी हैं मेरी,
लेकिन यह हसरत  है,
मरती  नहीं,
मर के

इतनी खौफनाक हो गयी है
ज़िन्दगी मेरी 
कि मौत पास भी नहीं आती
डर के

रेत और बालू ही
बचे हैं मुझ में आज,
पर चाहतें बाकी हैं अब भी 
मिलने की सागर से

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