Saturday, July 7, 2018

तय है एक दिन / पद्मजा शर्मा

मैं कब से कह रहा हूँ
तुम कब तक रहोगी चुप
तुम्हें भी कहना पड़ेगा
प्रेम से
एक दिन देख लेना
प्रेम

मैं तुम तक आने के लिए
कब से चल रहा हूँ
तुम कब तक रूक रहोगी
चलना पड़ेगा
प्रेम से
एक दिन देख लेना
जब हो जाएगा तुमको मुझसे
प्रेम

तुम अगर यह सब यूँ ही कहते रहे
तो तय है एक दिन
सुनते-सुनते
मैं भी सुनने लगूंगी तुम्हारी ही तरह
तुम को प्रेम।

No comments:

Post a Comment

घरेलू स्त्री / ममता व्यास

जिन्दगी को ही कविता माना उसने जब जैसी, जिस रूप में मिली खूब जतन से पढ़ा, सुना और गुना... वो नहीं जानती तुम्हारी कविताओं के नियम लेकिन उ...