धार लौटेगी एक दिन
सूखी हुई नदी की
तुम देख लेना
लहर आएगी
कगारों को सहलाएगी फिर से
एक आत्म दृप्त
मौलिक कृति की तरह
बस तुम बने रहने देना
स्रोतों को, रास्तों को, वृक्षों को
नदी के चिर परिचित
पहचान चिह्नों को
मिटा न देना
रेत, शंख, सीप और घोंघे
जिन्हे याद करके
अपनी तड़प और प्यास को
फिर तृप्त करेगी
ये कृत्रिमता, असहजता, अनअनुकूलता
फिर लौटेगी अपने जड़ों की ओर
तुम देख लेना
धार लौटेगी एक दिन |
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