Saturday, April 14, 2018

देश / शेरजंग गर्ग

ग्राम, नगर या कुछ लोगों का काम नहीं होता है देश
संसद, सड़कों, आयोगों का नाम नहीं होता है देश
देश नहीं होता है केवल सीमाओं से घिरा मकान
देश नहीं होता है कोई सजी हुई ऊँची दूकान
देश नहीं क्लब जिसमें बैठ करते रहें सदा हम मौज
देश नहीं केवल बंदूकें, देश नहीं होता है फौज
जहाँ प्रेम के दीपक जलते वहीं हुआ करता है देश
जहाँ इरादे नहीं बदलते वहीं हुआ करता है देश
सज्जन सीना ताने चलते वहीं हुआ करता है देश
हर दिल में अरमान मचलते वहीं हुआ करता है देश
वही होता जो सचमुच आगे बढ़ता क़दम-क़दम
धर्म, जाति, भाषाएँ जिसका ऊँचा रखती हैं परचम
पहले हम खुद को पहचाने फिर पहचानें अपना देश
एक दमकता सत्य बनेगा, नहीं रहेगा सपना देश

No comments:

Post a Comment

घरेलू स्त्री / ममता व्यास

जिन्दगी को ही कविता माना उसने जब जैसी, जिस रूप में मिली खूब जतन से पढ़ा, सुना और गुना... वो नहीं जानती तुम्हारी कविताओं के नियम लेकिन उ...