From childhood's hour I have not been
As others were; I have not seen
As others saw; I could not bring
My passions from a common spring.
From the same source I have not taken
My sorrow; I could not awaken
My heart to joy at the same tone;
And all I loved, I loved alone.
Then- in my childhood, in the dawn
Of a most stormy life- was drawn
From every depth of good and ill
The mystery which binds me still:
From the torrent, or the fountain,
From the red cliff of the mountain,
From the sun that round me rolled
In its autumn tint of gold,
From the lightning in the sky
As it passed me flying by,
From the thunder and the storm,
And the cloud that took the form
(When the rest of Heaven was blue)
Of a demon in my view.
Thursday, February 28, 2019
Wednesday, February 27, 2019
खून अपना हो या पराया हो / साहिर लुधियानवी
ख़ून अपना हो या पराया हो
नस्ले-आदम का ख़ून है आख़िर
जंग मग़रिब में हो कि मशरिक में
अमने आलम का ख़ून है आख़िर
बम घरों पर गिरें कि सरहद पर
रूहे-तामीर ज़ख़्म खाती है
खेत अपने जलें या औरों के
ज़ीस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती है
टैंक आगे बढें कि पीछे हटें
कोख धरती की बाँझ होती है
फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग
जिंदगी मय्यतों पे रोती है
इसलिए ऐ शरीफ इंसानो
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आँगन में
शमा जलती रहे तो बेहतर है।
नस्ले-आदम का ख़ून है आख़िर
जंग मग़रिब में हो कि मशरिक में
अमने आलम का ख़ून है आख़िर
बम घरों पर गिरें कि सरहद पर
रूहे-तामीर ज़ख़्म खाती है
खेत अपने जलें या औरों के
ज़ीस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती है
टैंक आगे बढें कि पीछे हटें
कोख धरती की बाँझ होती है
फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग
जिंदगी मय्यतों पे रोती है
इसलिए ऐ शरीफ इंसानो
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आँगन में
शमा जलती रहे तो बेहतर है।
Tuesday, February 26, 2019
शक्ति और क्षमा / रामधारी सिंह "दिनकर"
क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ, कब हारा?
क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।
तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे।
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से।
सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।
सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की।
सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ, कब हारा?
क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।
तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे।
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से।
सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।
सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की।
सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।
Monday, February 25, 2019
गुलाबी चूड़ियाँ / नागार्जुन
प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वरना किसे नहीं भाँएगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ!
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वरना किसे नहीं भाँएगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ!
Sunday, February 24, 2019
25 Minutes To Go / Shel Silverstein
They're buildin' the gallows outside my cell.
I got 25 minutes to go.
And in 25 minutes I'll be in Hell.
I got 24 minutes to go.
Well, they give me some beans for my last meal.
23 minutes to go.
And you know... nobody asked me how I feel.
I got 22 minutes to go.
So, I wrote to the Gov'nor... the whole damned bunch.
Ahhh... 21 minutes to go.
And I call up the Mayor, and he's out to lunch.
I got 20 more minutes to go.
Well, the Sheriff says, 'Boy, I wanna watch you die'.
19 minutes to go.
I laugh in his face... and I spit in his eye.
I got 18 minutes to go.
Well...I call out to the Warden to hear my plea.
17 minute to go.
He says, 'Call me back in a week or three.
You've got 16 minutes to go.'
Well, my lawyer says he's sorry he missed my case.
Mmmm....15 minutes to go.
Yeah, well if you're so sorry, come up and take my place.
I got 14 minutes to go.
Well, now here comes the padre to save my soul
With 13 minutes to go.
And he's talkin' about burnin', but I'm so damned cold.
I got 12 more minutes to go.
Now they're testin' the trap. It chills my spine.
I got 11 minutes to go.
'Cuz the goddamned thing it works just fine.
I got 10 more minutes to go.
I'm waitin' for the pardon... gonna set me free
With 9 more minutes to go.
But this ain't the movies, so to hell with me.
I got 8 more minutes to go.
And now I'm climbin up the ladder with a scaffold peg
With 7 more minutes to go.
I've betta' watch my step or else I'll break my leg.
I got 6 more minutes to go.
Yeah... with my feet on the trap and my head in the noose...
5 more minutes to go.
Well, c'mon somethin' and cut me loose.
I got 4 more minutes to go.
I can see the mountains. I see the sky.
3 more minutes to go.
And it's too damned pretty for a man to die.
I got 2 more minutes to go
I can hear the buzzards... hear the crows.
1 more minute to go.
And now I'm swingin' and here I gooooooooo....
I got 25 minutes to go.
And in 25 minutes I'll be in Hell.
I got 24 minutes to go.
Well, they give me some beans for my last meal.
23 minutes to go.
And you know... nobody asked me how I feel.
I got 22 minutes to go.
So, I wrote to the Gov'nor... the whole damned bunch.
Ahhh... 21 minutes to go.
And I call up the Mayor, and he's out to lunch.
I got 20 more minutes to go.
Well, the Sheriff says, 'Boy, I wanna watch you die'.
19 minutes to go.
I laugh in his face... and I spit in his eye.
I got 18 minutes to go.
Well...I call out to the Warden to hear my plea.
17 minute to go.
He says, 'Call me back in a week or three.
You've got 16 minutes to go.'
Well, my lawyer says he's sorry he missed my case.
Mmmm....15 minutes to go.
Yeah, well if you're so sorry, come up and take my place.
I got 14 minutes to go.
Well, now here comes the padre to save my soul
With 13 minutes to go.
And he's talkin' about burnin', but I'm so damned cold.
I got 12 more minutes to go.
Now they're testin' the trap. It chills my spine.
I got 11 minutes to go.
'Cuz the goddamned thing it works just fine.
I got 10 more minutes to go.
I'm waitin' for the pardon... gonna set me free
With 9 more minutes to go.
But this ain't the movies, so to hell with me.
I got 8 more minutes to go.
And now I'm climbin up the ladder with a scaffold peg
With 7 more minutes to go.
I've betta' watch my step or else I'll break my leg.
I got 6 more minutes to go.
Yeah... with my feet on the trap and my head in the noose...
5 more minutes to go.
Well, c'mon somethin' and cut me loose.
I got 4 more minutes to go.
I can see the mountains. I see the sky.
3 more minutes to go.
And it's too damned pretty for a man to die.
I got 2 more minutes to go
I can hear the buzzards... hear the crows.
1 more minute to go.
And now I'm swingin' and here I gooooooooo....
Saturday, February 23, 2019
इश्तेहार (इक कुड़ी) / शिव कुमार बटालवी
इक कुड़ी जिदा नाम मुहब्बत
गुम है-गुम है-गुम है ।
साद-मुरादी सोहनी फब्बत
गुम है-गुम है-गुम है ।
सूरत उस दी परियां वरगी
सीरत दी उह मरियम लगदी
हस्सदी है तां फुल्ल झड़दे ने
टुरदी है तां ग़ज़ल है लगदी
लंम-सलंमी सरू दे कद्द दी
उमर अजे है मर के अग्ग दी
पर नैणां दी गल्ल समझदी ।
गुम्यां जनम जनम हन होए
पर लग्गदै ज्युं कल्ल्ह दी गल्ल है
युं लग्गदै ज्युं अज्ज दी गल्ल है
युं लग्गदै ज्युं हुन दी गल्ल है
हुन तां मेरे कोल खड़ी सी
हुन तां मेरे कोल नहीं है
ए की छल है ए केही भटकण
सोच मेरी हैरान बड़ी है
नज़र मेरी हैरान बड़ी है
चेहरे दा रंग फोल रही है
ओस कुड़ी नूं टोल रही है ।
शाम ढले बाज़ारां दे
जद मोड़ां ते ख़ुशबू उग्गदी है
वेहल, थकावट, बेचैनी
जद चौराहआं ते आ जुड़दी है
रौले लिप्पी तनहायी विच
ओस कुड़ी दी थुड़ खांदी है
ओस कुड़ी दी थुड़ दिसदी है
हर छिन मैनूं युं लग्गदा है
हर दिन मैनूं युं लग्गदा है
जुड़े जशन ते भीड़ां विचों
जुड़ी महक दे झुरमट विचों
उह मैनूं आवाज़ दवेगी
मैं उहनूं पहचान लवांगा
उह मैनूं पहचान लवेगी
पर इस रौले दे हढ़ विचों
कोई मैनूं आवाज़ ना देंदा
कोई वी मेरे वल्ल ना विंहदा
पर ख़ौरे क्युं टपला लग्गदा
पर ख़ौरे क्युं झउला पैंदा
हर दिन हर इक भीड़ जुड़ी 'चों,
बुत्त उहदा ज्युं लंघ के जांदा
पर मैनूं ही नज़र ना आउंदा
गुम गई मैं ओस कुड़ी दे
चेहरे दे विच गुम्या रहन्दा
उस दे ग़म विच घुलदा रहन्दा
उस दे ग़म विच खुरदा जांदा ।
ओस कुड़ी नूं मेरी सौं है
ओस कुड़ी नूं अपनी सौं है
ओस कुड़ी नूं जग्ग दी सौं है
ओस कुड़ी नूं रब्ब दी सौं है
जे किते पढ़दी सुणदी होवे
ज्यूंदी जां उह मर रही होवे
इक वारी आ के मिल जावे
वफ़ा मेरी नूं दाग़ ना लावे
नहीं तां मैथों जिया ना जांदा
गीत कोई लिख्या ना जांदा
इक कुड़ी जिदा नां मुहब्बत
गुम है-गुम है-गुम है
साद-मुरादी सोहनी फब्बत
गुम है-गुम है-गुम है ।
(Listen to the poet's recital of the poem here. As a bonus treat, listen to Rabbi Shergil's take on the poem here. You may also enjoy listening to Diljit Dosanjh's rendition for the movie Udta Punjab.)
गुम है-गुम है-गुम है ।
साद-मुरादी सोहनी फब्बत
गुम है-गुम है-गुम है ।
सूरत उस दी परियां वरगी
सीरत दी उह मरियम लगदी
हस्सदी है तां फुल्ल झड़दे ने
टुरदी है तां ग़ज़ल है लगदी
लंम-सलंमी सरू दे कद्द दी
उमर अजे है मर के अग्ग दी
पर नैणां दी गल्ल समझदी ।
गुम्यां जनम जनम हन होए
पर लग्गदै ज्युं कल्ल्ह दी गल्ल है
युं लग्गदै ज्युं अज्ज दी गल्ल है
युं लग्गदै ज्युं हुन दी गल्ल है
हुन तां मेरे कोल खड़ी सी
हुन तां मेरे कोल नहीं है
ए की छल है ए केही भटकण
सोच मेरी हैरान बड़ी है
नज़र मेरी हैरान बड़ी है
चेहरे दा रंग फोल रही है
ओस कुड़ी नूं टोल रही है ।
शाम ढले बाज़ारां दे
जद मोड़ां ते ख़ुशबू उग्गदी है
वेहल, थकावट, बेचैनी
जद चौराहआं ते आ जुड़दी है
रौले लिप्पी तनहायी विच
ओस कुड़ी दी थुड़ खांदी है
ओस कुड़ी दी थुड़ दिसदी है
हर छिन मैनूं युं लग्गदा है
हर दिन मैनूं युं लग्गदा है
जुड़े जशन ते भीड़ां विचों
जुड़ी महक दे झुरमट विचों
उह मैनूं आवाज़ दवेगी
मैं उहनूं पहचान लवांगा
उह मैनूं पहचान लवेगी
पर इस रौले दे हढ़ विचों
कोई मैनूं आवाज़ ना देंदा
कोई वी मेरे वल्ल ना विंहदा
पर ख़ौरे क्युं टपला लग्गदा
पर ख़ौरे क्युं झउला पैंदा
हर दिन हर इक भीड़ जुड़ी 'चों,
बुत्त उहदा ज्युं लंघ के जांदा
पर मैनूं ही नज़र ना आउंदा
गुम गई मैं ओस कुड़ी दे
चेहरे दे विच गुम्या रहन्दा
उस दे ग़म विच घुलदा रहन्दा
उस दे ग़म विच खुरदा जांदा ।
ओस कुड़ी नूं मेरी सौं है
ओस कुड़ी नूं अपनी सौं है
ओस कुड़ी नूं जग्ग दी सौं है
ओस कुड़ी नूं रब्ब दी सौं है
जे किते पढ़दी सुणदी होवे
ज्यूंदी जां उह मर रही होवे
इक वारी आ के मिल जावे
वफ़ा मेरी नूं दाग़ ना लावे
नहीं तां मैथों जिया ना जांदा
गीत कोई लिख्या ना जांदा
इक कुड़ी जिदा नां मुहब्बत
गुम है-गुम है-गुम है
साद-मुरादी सोहनी फब्बत
गुम है-गुम है-गुम है ।
(Listen to the poet's recital of the poem here. As a bonus treat, listen to Rabbi Shergil's take on the poem here. You may also enjoy listening to Diljit Dosanjh's rendition for the movie Udta Punjab.)
Friday, February 22, 2019
घमासान हो रहा / भारतेन्दु मिश्र
आसमान लाल-लाल हो रहा
धरती पर घमासान हो रहा।
हरियाली खोई है
नदी कहीं सोई है
फसलों पर फिर किसान रो रहा।
सुख की आशाओं पर
खंडित सीमाओं पर
सिपाही लहूलुहान सो रहा।
चिनगी के बीज लिए
विदेशी तमीज लिए
परदेसी यहाँ धान बो रहा।
धरती पर घमासान हो रहा।
हरियाली खोई है
नदी कहीं सोई है
फसलों पर फिर किसान रो रहा।
सुख की आशाओं पर
खंडित सीमाओं पर
सिपाही लहूलुहान सो रहा।
चिनगी के बीज लिए
विदेशी तमीज लिए
परदेसी यहाँ धान बो रहा।
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