Sunday, July 26, 2020

साँसों में बसे हो तुम / शाज़ तमकनत

साँसों में बसे हो तुम आँखों में छुपा लूँगा
जब चाहूँ तुम्हें देखूँ आईना बना लूँगा

यादों से कहो मेरी बालीं से चली जाएँ
अब ऐ शब-ए-तन्हाई आराम ज़रा लूँगा

रंजिश से जुदाई तक क्या सानेहा गुज़रा है
क्या क्या मुझे दावा था जब चाहूँ मना लूँगा

तस्वीर ख़याली है हर आँख सवाली है
दुनिया मुझे क्या देगी दुनिया से मैं क्या लूँगा

कब लौट के आओगे इसरार नहीं करता
इतना मिरे बस में है मैं उम्र घटा लूँगा

क्या तोहमतें दुनिया ने ऐ 'शाज़' उठाई हैं
इक तोहमत-ए-हस्ती थी सोचा था उठा लूँगा

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