Saturday, February 22, 2020

वो नज़र दे / खलील तनवीर

औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र दे
हाँ अपनी बुराई को परखने का हुनर दे

वो लोग जो सूरज के उजाले में चले थे
किस राह में गुम हो गए कुछ उन की ख़बर दे

इक उम्र से जलते हुए सहराओं में गुम हूँ
कुछ देर ठहर जाऊँगा दामान-ए-शजर दे

इक ख़ौफ़ सा तारी है घरों से नहीं निकले
तरसी हुई आँखों को सराबों का सफ़र दे

सब अपने चराग़ों को बुझाए हुए चुप हैं
इक आग सी सीने में लगा दे वो शरर दे

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