Monday, September 23, 2019

आश्चर्य / छगनलाल सोनी

भीष्म नहीं चाहते थे
परिवार का बिखराव
कृष्ण नहीं चाहते थे
एक युग की समप्ति
धृतराष्ट्र नहीं चाहते थे
राज-पतन
द्रौपदी नहीं चाहती थी-
चीर हरण।

इसके बावजूद
वह सब हुआ
जो नहीं होना था

आज हमारा न चाहना
हमारी चुप्पी में
चाहने की स्वीकृति ही तो है

तालियों से झर रही है शर्म
उतर रहे हैं कपड़े
और देख रहे हैं हम
आश्चर्य की श्रृंखला में
जुड़ते हुए अपने नाम।

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