Sunday, February 25, 2018

कभी ख़ुद पे, कभी हालात पे रोना आया / साहिर लुधियानवी

कभी ख़ुद पे, कभी हालात पे रोना आया
बात निकली, तो हर इक बात पे रोना आया
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उनको
क्या हुआ आज, ये किस बात पे रोना आया
किस लिये जीते हैं हम किसके लिये जीते हैं
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सबको अपनी ही किसी बात पे रोना आया

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